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बक्सर में बेलगाम नौकरशाही: मुख्यमंत्री के डेढ़ घंटे के दौरे के लिए 20 घंटे सड़कें बंद, जनता में नाराजगी

Unbridled bureaucracy in Buxar
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बिहार के बक्सर जिले में 6 सितंबर 2025 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक घंटे 25 मिनट के दौरे ने स्थानीय प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजपुर प्रखंड के सैथु गांव में आयोजित इस संक्षिप्त कार्यक्रम के लिए जिला प्रशासन ने प्रमुख सड़कों को 20 घंटे तक बंद करने का आदेश जारी किया। इस फैसले ने न केवल जनता को परेशान किया, बल्कि नौकरशाही के बेलगाम रवैये और लोकतंत्र पर इसके प्रभाव को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं।

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मुख्यमंत्री का दौरा और सड़क बंदी का आदेश

6 सितंबर 2025 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बक्सर जिले के राजपुर प्रखंड के सैथु गांव में हवाई मार्ग से पहुंचे। उनका यह दौरा प्रगति यात्रा का हिस्सा था, जिसमें वे विकास योजनाओं की समीक्षा और कुछ परियोजनाओं का उद्घाटन करने वाले थे। यह कार्यक्रम केवल एक घंटे 25 मिनट का था, लेकिन इसके लिए जिला प्रशासन ने 5 सितंबर रात 9:00 बजे से 6 सितंबर शाम 5:00 बजे तक यानी पूरे 20 घंटे के लिए प्रमुख सड़कों पर वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दी।

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इसके तहत निम्नलिखित सड़कों को बंद किया गया:

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  • बक्सर–चौसा–मोहनिया नेशनल हाईवे-319A
  • चौसा–कोचस–सासाराम स्टेट हाईवे
  • कोरानसराय–सरेंजा रोड

इस आदेश ने बक्सर की जनता को हैरान कर दिया, क्योंकि इतने संक्षिप्त दौरे के लिए इतने लंबे समय तक सड़कें बंद करना असामान्य और अव्यवहारिक लगा।

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प्रशासन का फैसला: सवालों के घेरे में

मुख्यमंत्री के दौरे के लिए सुरक्षा व्यवस्था जरूरी है, लेकिन इस मामले में प्रशासन के फैसले ने कई सवाल खड़े किए हैं:

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  1. 20 घंटे की सड़क बंदी क्यों?
    मुख्यमंत्री का दौरा केवल डेढ़ घंटे का था, फिर भी प्रशासन ने पूरे 20 घंटे तक प्रमुख सड़कों को बंद करने का आदेश दिया। यह फैसला जनता के लिए असुविधाजनक रहा, क्योंकि इन सड़कों पर रोजाना हजारों लोग आवागमन करते हैं।
  2. ट्रैफिक प्लान की कमी
    प्रशासन ने सड़क बंदी का आदेश लागू होने से महज 4 घंटे पहले जारी किया। इतने कम समय में यह सूचना सभी वाहन मालिकों और आम जनता तक पहुंचना मुश्किल था। इसके अलावा, वैकल्पिक मार्गों या रूट डायवर्जन की कोई जानकारी नहीं दी गई, जिससे लोगों को भारी परेशानी हुई।
  3. लोकतंत्र पर प्रभाव
    इस तरह के फैसले जनता में नाराजगी और अविश्वास पैदा करते हैं। कई लोगों का मानना है कि यह नौकरशाही का बेलगाम रवैया है, जो लोकतंत्र के सिद्धांतों को कमजोर करता है।
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जनता पर प्रभाव: परेशानी और असंतोष

20 घंटे की सड़क बंदी ने बक्सर की जनता को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। व्यापारी, नौकरीपेशा लोग, और आम नागरिक इस फैसले से प्रभावित हुए। स्थानीय दुकानदारों ने बताया कि सड़क बंद होने से उनकी दैनिक कमाई पर असर पड़ा। मरीजों को अस्पताल पहुंचने में देरी हुई, और स्कूल-कॉलेज जाने वाले छात्रों को भी असुविधा हुई।

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एक स्थानीय निवासी ने कहा, “मुख्यमंत्री का दौरा महत्वपूर्ण है, लेकिन डेढ़ घंटे के लिए 20 घंटे तक सड़कें बंद करना समझ से परे है। प्रशासन को जनता की सुविधा का भी ध्यान रखना चाहिए।”

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नौकरशाही का बेलगाम रवैया: एक चिंता

पिछले कुछ वर्षों में बिहार में नौकरशाही का रवैया तेजी से बेलगाम होता जा रहा है। यह घटना इसका ताजा उदाहरण है। पहले भी कई बार वीआईपी दौरे के नाम पर जनता को अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ा है। इस तरह के फैसले न केवल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाते हैं, बल्कि लोकतंत्र के प्रति लोगों का भरोसा भी कम करते हैं।

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18 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय एक पत्रकार ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा, “10-15 साल पहले वीआईपी कल्चर को खत्म करने की बात करने वाले नेता आज सत्ता में हैं, लेकिन स्थिति और खराब हो रही है। नौकरशाही का यह रवैया जनता के हितों को नजरअंदाज करता है।”

राजनीतिक मौन: सवालों का जवाब कौन देगा?

इस घटना ने एक और महत्वपूर्ण सवाल उठाया है कि सत्ताधारी और विपक्षी दलों के नेता इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं? क्या वे भी उसी दिन का इंतजार कर रहे हैं जब उन्हें भी इसी तरह के विशेष प्रोटोकॉल का लाभ मिलेगा?

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह के फैसलों पर सवाल उठाने की जरूरत है। एक व्यापारी ने कहा, “जब तक जनता और नेता इस तरह के आदेशों पर सवाल नहीं उठाएंगे, तब तक नौकरशाही का यह रवैया नहीं बदलेगा।”

बक्सर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के डेढ़ घंटे के दौरे के लिए 20 घंटे तक सड़कें बंद करने का प्रशासनिक फैसला नौकरशाही के बेलगाम रवैये का प्रतीक है। इस फैसले ने न केवल जनता को परेशान किया, बल्कि लोकतंत्र और प्रशासनिक पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े किए। ट्रैफिक प्लान की कमी, वैकल्पिक मार्गों की अनुपस्थिति, और आखिरी समय में सूचना जारी करना इस घटना की गंभीरता को और बढ़ाता है।

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बक्सर की जनता अब इस तरह के फैसलों को चुपचाप स्वीकार करने के मूड में नहीं है। यह घटना प्रशासन और नेताओं के लिए एक सबक है कि जनता की सुविधा और लोकतंत्र के सिद्धांतों को प्राथमिकता देनी होगी। क्या इस तरह के आदेश भविष्य में कम होंगे, या नौकरशाही का यह रवैया और बेलगाम होगा? यह सवाल बक्सर की जनता के मन में बार-बार उठ रहा है।


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