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सनातन जोड़ो यात्रा का पांचवां दिन ऐतिहासिक, हजारों श्रद्धालुओं ने लिया हिस्सा

Maharishi Chvyan Muni Ashram
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बिहार के बक्सर जिले की पवित्र भूमि पर विश्वामित्र सेना द्वारा आयोजित “सनातन जोड़ो यात्रा” का पांचवां दिन रविवार को ऐतिहासिक बन गया। 100 किलोमीटर लंबी इस पदयात्रा में हजारों श्रद्धालुओं ने उत्साह और भक्ति के साथ हिस्सा लिया। ग्रामीण इलाकों से लेकर कस्बों तक, स्थानीय लोगों ने इस आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा का खुले दिल से स्वागत किया। भगवा ध्वज, धार्मिक भजनों और जयकारों के साथ बक्सर का माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो गया। विश्वामित्र सेना के राष्ट्रीय संयोजक राजकुमार चौबे ने इसे सनातनी आस्था और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बताया।

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सनातन जोड़ो यात्रा का भव्य आयोजन

रविवार को बक्सर में विश्वामित्र सेना द्वारा आयोजित सनातन जोड़ो यात्रा का पांचवां दिन न केवल भक्ति और उत्साह से भरा रहा, बल्कि यह एक जनांदोलन का रूप ले चुका है। इस 100 किलोमीटर लंबी पदयात्रा में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए, जिनमें युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सभी थे। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी कस्बों तक, हर जगह लोगों ने इस यात्रा का भव्य स्वागत किया।

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यात्रा की शुरुआत सुबह 10:00 बजे बक्सर के विश्वामित्र सेना के प्रधान कार्यालय से हुई। ढोल-नगाड़ों, भक्ति भजनों और “जय श्री राम” जैसे जयकारों ने माहौल को और भी जीवंत बना दिया। सड़कों पर भगवा ध्वज लहरा रहे थे, और जगह-जगह स्थानीय लोगों ने फूलों और प्रसाद के साथ यात्रा का स्वागत किया। यह दृश्य बक्सर की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन गया।

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यात्रा का मार्ग और प्रमुख पड़ाव

सनातन जोड़ो यात्रा ने बक्सर के कई महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों को जोड़ा। यात्रा का पहला पड़ाव महर्षि च्वयन मुनि आश्रम (महादेवा घाट, चौसा) था, जहां सुबह 11:30 बजे विशेष पूजन और अर्चना का आयोजन किया गया। इस दौरान श्रद्धालुओं ने मंत्रोच्चार के साथ आध्यात्मिक माहौल में भाग लिया।

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11:45 बजे डोमाडेरवा से एक विशाल पदयात्रा शुरू हुई, जो चौसा बाजार होते हुए दुर्गा मंदिर तक पहुंची। रास्ते में स्थानीय लोगों ने पुष्पवर्षा और स्वागत समारोहों के साथ यात्रा का अभिनंदन किया। दोपहर 2:30 बजे प्राचीन सूर्य मंदिर, देवढ़िया में भारी भीड़ के बीच एक विशेष स्वागत समारोह और सनातनी संबोधन हुआ। इस दौरान वक्ताओं ने सनातन संस्कृति की महत्ता और एकता के महत्व पर जोर दिया।

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यात्रा इसके बाद देवढ़िया, इटवा, सगरांव पुल, कजरियां पुल होते हुए गैधरा पहुंची, जहां 4:15 बजे एक और सनातनी संबोधन का आयोजन हुआ। शाम होते-होते यात्रा ने देवी डेहरा, नागपुर, देवल मोड़, रामपुर, ईसापुर महावीर स्थान, और चौसा गोला जैसे क्षेत्रों को पार किया। अंत में, यात्रा पुनः प्रधान कार्यालय पर पहुंचकर संपन्न हुई। रास्ते में जगह-जगह प्रसाद वितरण का आयोजन किया गया, जिसने भक्ति के साथ-साथ सेवा भाव को भी दर्शाया।

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राजकुमार चौबे का संबोधन और सांस्कृतिक महत्व

विश्वामित्र सेना के राष्ट्रीय संयोजक राजकुमार चौबे ने यात्रा के दौरान कई स्थानों पर सनातन संस्कृति और सामाजिक एकता पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री द्वारा बक्सर को दी गई 600 करोड़ की सौगात हमारी वर्षों की तपस्या और संघर्ष का परिणाम है। यह केवल विकास की बात नहीं है, बल्कि यह सनातनी आस्था की विजय और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है।”

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उन्होंने आगे कहा, “सनातन जोड़ो यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया है कि बक्सर की जनता अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक मूल्यों के साथ खड़ी है। यह यात्रा अब एक जनांदोलन बन चुकी है, जिसका उद्देश्य केवल धर्म का प्रचार नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक जागरूकता को मजबूत करना है।”

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राजकुमार चौबे के ये शब्द न केवल यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं को प्रेरित करने वाले थे, बल्कि बक्सर को राष्ट्रीय स्तर पर एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित करने की उनकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाते हैं।

स्थानीय लोगों का उत्साह और जनसहयोग

सनातन जोड़ो यात्रा को स्थानीय लोगों ने “महायात्रा” की संज्ञा दी है। इस यात्रा में युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों की बढ़-चढ़कर भागीदारी ने यह साबित किया कि सनातन संस्कृति और धर्म के प्रति लोगों का जुड़ाव गहरा है। जगह-जगह स्वागत समारोह, पुष्पवर्षा और प्रसाद वितरण ने इस यात्रा को एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप दे दिया।

एक स्थानीय निवासी ने कहा, “यह यात्रा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति को जोड़ने और समाज में एकता लाने का एक अनूठा प्रयास है। हम गर्व महसूस करते हैं कि बक्सर इस तरह के आयोजन का केंद्र बन रहा है।”

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यात्रा में शामिल महिलाओं ने भी इसे सनातन संस्कृति के संरक्षण और प्रचार का एक महत्वपूर्ण कदम बताया। एक महिला श्रद्धालु ने कहा, “हमारी संस्कृति और परंपराएं हमारी पहचान हैं। इस यात्रा ने हमें एकजुट होने और अपने मूल्यों को बचाने की प्रेरणा दी है।”

स्वयंसेवकों की भूमिका और सुरक्षा व्यवस्था

यात्रा के सफल आयोजन में सैकड़ों स्वयंसेवकों की सक्रिय भूमिका रही। उन्होंने यात्रा के संचालन, सुरक्षा व्यवस्था और श्रद्धालुओं की सुविधा का विशेष ध्यान रखा। भगवा ध्वजों और धार्मिक नारों के साथ यात्रा का माहौल पूरी तरह से उत्सवमय रहा। स्वयंसेवकों ने जगह-जगह पानी, प्रसाद और अन्य व्यवस्थाओं को सुनिश्चित किया, जिससे श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा न हो।

यात्रा के दौरान सुरक्षा व्यवस्था भी चाक-चौबंद रही। स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने भीड़ प्रबंधन और यातायात व्यवस्था को सुचारू रखने में सहयोग किया। इस तरह की व्यवस्था ने यात्रा को और भी व्यवस्थित और प्रभावशाली बनाया।

सनातन जोड़ो यात्रा का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

सनातन जोड़ो यात्रा का यह पांचवां दिन बक्सर की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को नई ऊंचाइयों तक ले गया। यह यात्रा न केवल धार्मिक स्थलों को जोड़ने का माध्यम बनी, बल्कि इसने सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक जागरूकता को भी बढ़ावा दिया। बक्सर, जो भगवान श्रीराम और विश्वामित्र जैसे महान ऋषियों की तपोभूमि रहा है, इस यात्रा के माध्यम से अपनी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक विरासत को फिर से जीवंत कर रहा है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि यह यात्रा बक्सर को राष्ट्रीय स्तर पर एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यह आयोजन न केवल धार्मिक उत्साह को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को एक मंच पर लाकर सामाजिक एकता को भी मजबूत कर रहा है।

बक्सर में विश्वामित्र सेना द्वारा आयोजित सनातन जोड़ो यात्रा का पांचवां दिन एक ऐतिहासिक और भक्तिमय आयोजन के रूप में दर्ज हो गया। 100 किलोमीटर की इस पदयात्रा में हजारों श्रद्धालुओं की भागीदारी, भव्य स्वागत समारोह और राजकुमार चौबे के प्रेरक संबोधन ने इसे एक जनांदोलन का रूप दे दिया। महर्षि च्वयन मुनि आश्रम, प्राचीन सूर्य मंदिर देवढ़िया, और अन्य धार्मिक स्थलों को जोड़ने वाली यह यात्रा बक्सर की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को नई ऊंचाइयों तक ले जा रही है।

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यात्रा ने यह साबित कर दिया कि सनातन संस्कृति न केवल परंपरा है, बल्कि यह समाज को एकजुट करने और भविष्य की दिशा तय करने का एक सशक्त माध्यम भी है। बक्सर की जनता और विश्वामित्र सेना के इस प्रयास ने पूरे देश के लिए एक प्रेरणा स्थापित की है। क्या यह यात्रा सनातन संस्कृति को और मजबूत कर पाएगी? यह सवाल हर उस व्यक्ति के मन में है, जो इस महायात्रा का हिस्सा बना।


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