बिहार में तीज का त्योहार न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। यह त्योहार पत्नियों और अविवाहित लड़कियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख के लिए मनाया जाता है। लेकिन आधुनिक जीवनशैली और व्यस्तता के बीच इस परंपरा का महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। इसे फिर से जीवंत करने के लिए एक अनूठी पहल शुरू की गई है, जिसमें डिजिटल कहानी कहने (डिजिटल स्टोरीटेलिंग) के माध्यम से तीज की परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।

तीज का त्योहार बिहार सहित उत्तर भारत में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यह हिंदू पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, जिसमें कहा जाता है कि माता सीता और पार्वती ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखा था। यह विश्वास है कि तीज का व्रत रखने से विवाहित महिलाओं के पति को लंबी आयु मिलती है, जबकि अविवाहित लड़कियों को अच्छा और गुणवान जीवनसाथी प्राप्त होता है।
तीज के रीति-रिवाज और विश्वास
तीज का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है निर्जला व्रत, जिसमें बिना पानी और भोजन के उपवास किया जाता है। मान्यता है कि जितना लंबा और कठिन व्रत होगा, उतनी ही लंबी पति की आयु होगी। इसके अलावा, मांग में सिंदूर लगाने की प्रथा भी महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि मांग में जितना लंबा सिंदूर लगाया जाता है, वह पति की आयु को दर्शाता है।
महिलाएं इस दिन लाल या हरे रंग की साड़ियां पहनती हैं, मेहंदी लगाती हैं और भगवान शिव और पार्वती की पूजा करती हैं। सामूहिक भजन, नृत्य और लोक गीत इस उत्सव का हिस्सा हैं, जो सामुदायिक एकता को बढ़ाते हैं।
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डिजिटल पहल: परंपरा को नया जीवन
आधुनिक समय में तीज जैसे परंपरागत त्योहारों का महत्व कम होता जा रहा है। कई लोग इसे पुराने जमाने की रस्म या “दकियानूसी” मानने लगे हैं। इस प्रवृत्ति को बदलने के लिए बिहार के बक्सर जिला के युवाओ ने एक फिल्म प्रोजेक्ट शुरू किया है, जो डिजिटल माध्यमों के जरिए तीज की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता को फिर से स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
तीज फिल्म प्रोजेक्ट की प्रेरणा
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य तीज की परंपरा को जीवंत रखना और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना है। निर्देशक ने बताया कि यह पहल सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक कदम है। यह तरीका ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में सक्षम है, खासकर उन युवाओं तक जो आधुनिक व्यस्तता में इस परंपरा से दूर हो गए हैं।
फिल्म का केंद्रीय संदेश
फिल्म का मुख्य उद्देश्य तीज की परंपराओं को पुनर्जनन करना है। यह लोगों को याद दिलाती है कि यह त्योहार केवल धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। फिल्म में तीज के व्रत, पूजा और रीति-रिवाजों को भावनात्मक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दर्शाया गया है, ताकि दर्शक इसे अपने जीवन से जोड़ सकें।

पर्दे के पीछे: कहानी को आकार देना
तीज की कहानी का निर्माण
फिल्म में तीज की कहानी को एक भावनात्मक और प्रेरणादायक ढंग से पेश किया गया है। इसमें अविवाहित लड़कियों को अच्छे जीवनसाथी के लिए व्रत रखते हुए और विवाहित महिलाओं को अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास करते हुए दिखाया गया है। कहानी का उद्देश्य दर्शकों के दिलों को छूना और उन्हें तीज के महत्व से जोड़ना है।
कलाकार और क्रू की भूमिका
इस प्रोजेक्ट में कई प्रतिभाशाली कलाकारों और क्रू ने योगदान दिया है। प्रमुख कलाकारों में शामिल हैं कई ऐसे चेहरे, जो तीज की भावना को जीवंत करते हैं। उनकी मेहनत और समर्पण ने इस कहानी को प्रभावशाली बनाया है। क्रू ने फिल्म की शूटिंग और प्रोडक्शन में सामूहिक प्रयास किए, ताकि यह प्रोजेक्ट दर्शकों तक प्रभावी ढंग से पहुंच सके।
सेट से आवाजें: कलाकारों की राय
परंपराओं को जीवित रखने की बात
एक प्रमुख अभिनेत्री ने बताया कि तीज की परंपराएं हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। डिजिटल माध्यमों के जरिए इन परंपराओं को जीवित रखना आज के समय की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह फिल्म न केवल तीज के महत्व को दर्शाती है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का एक शानदार तरीका है।
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तीज व्रत का महत्व
एक अन्य अभिनेत्री ने तीज के व्रत के आध्यात्मिक और भावनात्मक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यह व्रत महिलाओं के लिए अपने परिवार और पति की भलाई के लिए एक समर्पण है। यह विश्वास और प्रेम का प्रतीक है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
लोगों से अपील: अपनी जड़ों से जुड़ें
फिल्म के निर्माताओं और कलाकारों का दर्शकों से स्पष्ट संदेश है कि वे तीज के त्योहार को उत्साह के साथ मनाएं। वे चाहते हैं कि लोग केवल दर्शक बनकर न रहें, बल्कि सक्रिय रूप से इस परंपरा में शामिल हों। व्रत रखना, पूजा करना और सामुदायिक आयोजनों में हिस्सा लेना इस त्योहार को जीवंत रखने का तरीका है।
डिजिटल युग में परंपराओं को अपनाना
आधुनिक युग में तीज जैसे त्योहारों का महत्व कम नहीं हुआ है। डिजिटल माध्यम इन परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक प्रभावी जरिया है। लोग अपनी प्रतिक्रियाएं और अनुभव साझा कर सकते हैं, जिससे यह परंपरा और मजबूत होगी।

तीज के त्योहार को डिजिटल कहानी कहने के जरिए पुनर्जनन करने की यह पहल एक प्रेरणादायक कदम है। यह न केवल बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करती है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का भी प्रयास करती है। तीज का त्योहार प्रेम, समर्पण और एकता का प्रतीक है, और इस फिल्म के माध्यम से इसका महत्व फिर से सामने आया है। यह पहल हमें याद दिलाती है कि हमारी परंपराएं हमें हमारी पहचान देती हैं, और इन्हें जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है।
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