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खेती की आय पर टैक्स: कब जरूरी है ITR, कब मिलती है छूट?

Farming Income Tax
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भारत में खेती को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, और किसानों की आय को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई तरह की छूट देती है। आम धारणा है कि खेती से होने वाली आय पूरी तरह टैक्स-मुक्त होती है, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। कुछ खास परिस्थितियों में किसानों को इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) भरना पड़ सकता है और टैक्स देना पड़ सकता है।

खेती की आय पर टैक्स: क्या है नियम?

भारत में इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 10(1) के तहत खेती से होने वाली आय को टैक्स से छूट दी गई है। इसका मतलब है कि अगर आपकी आय केवल खेती से है, जैसे फसल उगाने, बागवानी, या डेयरी फार्मिंग से, तो उस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। लेकिन यह छूट कुछ शर्तों के साथ आती है। अगर आपकी आय का कोई हिस्सा खेती से इतर है, तो टैक्स नियम बदल सकते हैं।

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खेती की आय में शामिल हैं:

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  • फसलों की बिक्री से होने वाली कमाई।
  • बागवानी, डेयरी फार्मिंग, या मुर्गी पालन से आय।
  • खेती की जमीन से किराए के रूप में मिलने वाली आय (कुछ शर्तों के साथ)।

किन परिस्थितियों में टैक्स देना पड़ सकता है?

हालांकि खेती की आय टैक्स-मुक्त होती है, कुछ खास मामलों में टैक्स देनदारी बन सकती है। आइए इन परिस्थितियों को समझते हैं:

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1. खेती के अलावा अन्य आय पर टैक्स

अगर कोई किसान खेती के साथ-साथ नौकरी, बिजनेस, या अन्य स्रोतों से कमाई करता है, तो उसकी कुल आय पर टैक्स की गणना में खेती की आय को भी जोड़ा जाता है। इसे आंशिक इंटिग्रेशन ऑफ एग्रीकल्चरल इनकम कहा जाता है। इसका मतलब है कि खेती की आय टैक्स-मुक्त रहेगी, लेकिन यह आपकी कुल टैक्स स्लैब को प्रभावित कर सकती है।

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उदाहरण के लिए:

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  • अगर आपकी खेती से आय 3 लाख रुपये और नौकरी से आय 5 लाख रुपये है, तो कुल आय 8 लाख रुपये मानी जाएगी।
  • इसमें खेती की आय (3 लाख) टैक्स-मुक्त रहेगी, लेकिन नौकरी की आय (5 लाख) पर टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगेगा।
  • अगर कुल आय टैक्सेबल सीमा (7 लाख रुपये, पुराने टैक्स रिजीम में) से ज्यादा है, तो आपको ITR फाइल करना होगा।

2. प्रोफेशनल या कॉर्पोरेट फार्मिंग पर टैक्स

अगर कोई व्यक्ति या कंपनी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, बड़े पैमाने पर खेती, या प्रोसेसिंग से जुड़ा बिजनेस करता है, तो उसकी आय को बिजनेस इनकम माना जा सकता है। ऐसी स्थिति में यह आय टैक्स के दायरे में आती है।

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उदाहरण के लिए:

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  • अगर कोई कंपनी बड़े पैमाने पर खेती करती है और उसकी ज्यादातर कमाई प्रोसेसिंग (जैसे फूड प्रोसेसिंग यूनिट) से आती है, तो यह खेती की आय नहीं, बल्कि बिजनेस आय मानी जाएगी।
  • इस पर इनकम टैक्स एक्ट की धारा 28 के तहत टैक्स लगेगा।

3. जमीन लीज पर देने की आय

अगर कोई किसान अपनी खेती की जमीन किराए पर देता है और उससे आय प्राप्त करता है, तो यह आय किराए की आय मानी जाएगी, न कि खेती की आय। ऐसी आय इनकम टैक्स एक्ट की धारा 56 के तहत टैक्सेबल होती है।

उदाहरण:

  • अगर आप अपनी जमीन किसी और को खेती के लिए किराए पर देते हैं और सालाना 2 लाख रुपये कमाते हैं, तो यह आय टैक्स के दायरे में आएगी।
  • इस पर टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होगा।

खेती से मिलने वाली सब्सिडी: टैक्स-मुक्त

किसानों को सरकार या राज्य सरकार से मिलने वाली सब्सिडी और ग्रांट पूरी तरह टैक्स-मुक्त होती हैं। इनकम टैक्स एक्ट की धारा 10(1) के तहत ऐसी आय पर कोई टैक्स नहीं लगता। इसमें शामिल हैं:

  • खेती के उपकरण, बीज, या उर्वरक पर मिलने वाली सब्सिडी।
  • फसल बीमा योजना या अन्य कृषि योजनाओं से मिलने वाली राशि।
  • बाढ़, सूखा, या अन्य प्राकृतिक आपदा के लिए मिलने वाली राहत राशि।

यह छूट किसानों की लागत कम करने और उनकी आय बढ़ाने के लिए दी जाती है।

ITR फाइल करना कब जरूरी है?

भले ही खेती की आय टैक्स-मुक्त हो, कुछ परिस्थितियों में किसानों को इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करना जरूरी हो सकता है:

  1. अगर कुल आय टैक्सेबल सीमा से ज्यादा है: अगर खेती और अन्य स्रोतों (जैसे नौकरी, बिजनेस, या किराया) से कुल आय पुराने रिजीम में 2.5 लाख रुपये (या नए रिजीम में 3 लाख रुपये) से ज्यादा है, तो ITR फाइल करना अनिवार्य है।
  2. बिजनेस इनकम के साथ खेती की आय: अगर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग या प्रोसेसिंग से आय हो, तो इसे बिजनेस आय मानकर ITR फाइल करना होगा।
  3. वित्तीय रिकॉर्ड के लिए: ITR फाइल करने से वित्तीय रिकॉर्ड मजबूत होता है, जो लोन, वीजा, या अन्य जरूरतों के लिए उपयोगी हो सकता है।

टैक्स बचाने के लिए क्या करें?

किसान अपनी टैक्स देनदारी को कम करने के लिए कुछ उपाय अपना सकते हैं:

  1. सही आय का वर्गीकरण: सुनिश्चित करें कि खेती की आय को बिजनेस आय या किराए की आय के साथ न मिलाया जाए।
  2. सब्सिडी का पूरा उपयोग: सरकार की सब्सिडी योजनाओं का लाभ उठाएं, जो टैक्स-मुक्त होती हैं।
  3. पुराने टैक्स रिजीम का चयन: अगर खेती के अलावा अन्य आय है, तो पुराना टैक्स रिजीम चुनकर सेक्शन 80C और 80D जैसे डिडक्शंस का लाभ उठाएं।
  4. वित्तीय सलाह लें: किसी टैक्स विशेषज्ञ से सलाह लेकर अपने सैलरी स्ट्रक्चर को टैक्स-फ्रेंडली बनाएं।

आम गलतियां और सावधानियां

कई किसान टैक्स नियमों को लेकर जागरूकता की कमी के कारण गलतियां करते हैं:

  • खेती की आय को बिजनेस आय समझना: अगर आप प्रोसेसिंग या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करते हैं, तो आय का सही वर्गीकरण करें।
  • ITR न फाइल करना: भले ही आय टैक्स-मुक्त हो, अगर कुल आय टैक्सेबल सीमा से ज्यादा है, तो ITR फाइल करना जरूरी है।
  • किराए की आय को छिपाना: जमीन किराए पर देने की आय को टैक्स रिटर्न में दिखाना अनिवार्य है।
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भारत में खेती की आय को टैक्स-मुक्त रखने का मकसद किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करना है। लेकिन कुछ खास परिस्थितियों में, जैसे बिजनेस आय, किराए की आय, या अन्य स्रोतों से कमाई होने पर टैक्स देनदारी बन सकती है। किसानों को इन नियमों की जानकारी होना जरूरी है ताकि वे सही समय पर ITR फाइल कर सकें और अनावश्यक पेनल्टी से बच सकें। सब्सिडी और ग्रांट जैसी टैक्स-मुक्त सुविधाओं का पूरा लाभ उठाकर किसान अपनी आय को और बढ़ा सकते हैं। अगर आप खेती से जुड़े हैं, तो टैक्स नियमों को समझें और अपनी वित्तीय योजना को मजबूत करें।


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