बिहार के बक्सर जिले में नगर परिषद की स्वच्छता व्यवस्था एक बार फिर सुर्खियों में है। ऐतिहासिक किला मैदान और अन्य इलाकों में कचरा डंपिंग को लेकर विवाद गहरा गया है। स्वच्छता पदाधिकारी ने दावा किया है कि वे मौखिक आदेश पर काम करते हैं और 1 करोड़ 15 लाख के टेंडर में से 15 लाख रुपये हर महीने जुर्माने के रूप में काट लेते हैं। इस बयान ने न केवल स्थानीय प्रशासन को हिलाकर रख दिया, बल्कि शहरवासियों में भी आक्रोश पैदा कर दिया है। लोग इसे काली कमाई का खेल बता रहे हैं। आइए, इस मुद्दे को सरल और रोचक तरीके से समझें।

किला मैदान में कचरे का ढेर
971 साल पुराना राजा रुद्रदेव का किला बक्सर का गौरव है, लेकिन आज यह कचरे के ढेर से बदनाम हो रहा है। किला मैदान, सर्किट हाउस, ठोरा नदी, सदर अस्पताल, लॉ कॉलेज, बाईपास नहर, और ग्यारह नंबर लख जैसे इलाकों में कचरा डंपिंग की समस्या आम हो गई है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि नगर परिषद के अधिकारी बिना किसी लिखित आदेश के कचरा डंप करने की अनुमति देते हैं।
हाल ही में ग्यारह नंबर लख पर कचरे में लगी आग ने दो दर्जन से अधिक हरे-भरे पेड़ों को जला दिया, जिससे राज्य सरकार की जल-जीवन-हरियाली योजना को बड़ा नुकसान हुआ। इस घटना ने नगर परिषद की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
स्वच्छता पदाधिकारी का चौंकाने वाला बयान
नगर परिषद के स्वच्छता पदाधिकारी ने किला मैदान में कचरा डंपिंग पर सफाई देते हुए कहा कि खतीबा में सड़क मरम्मत के कारण कचरा किला मैदान और सर्किट हाउस के बीच डंप किया जा रहा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि इसके लिए लिखित आदेश की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि उनके मौखिक आदेश ही पर्याप्त हैं।
उन्होंने खुलासा किया कि 1 करोड़ 15 लाख रुपये के मासिक टेंडर में से 15 लाख रुपये जुर्माने के रूप में काट लिए जाते हैं, क्योंकि ठेकेदार “मनमाफिक काम नहीं करता।” इस बयान ने पूरे प्रशासन को हिलाकर रख दिया। स्थानीय लोग और राजनेता इसे काली कमाई का खेल बता रहे हैं, जिसमें पारदर्शिता की भारी कमी है।

600 कर्मचारी या सिर्फ कागजी खेल?
नगर परिषद के अनुसार, बक्सर के 42 वार्डों की सफाई के लिए 600 स्वच्छता कर्मचारी काम करते हैं, जो रोजाना 88 टन कचरे को संभालते हैं। हर साल स्वच्छता पर 13.8 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। लेकिन वार्ड पार्षदों का दावा है कि प्रत्येक वार्ड में औसतन केवल 7 कर्मचारी ही काम करते हैं, जो कुल मिलाकर 294 कर्मचारी होते हैं। इससे सवाल उठता है कि बाकी कर्मचारियों की संख्या केवल कागजों पर तो नहीं है?
स्थानीय लोगों का कहना है कि सफाई कर्मचारियों की कमी और अधिकारियों की मिलीभगत के कारण शहर में गंदगी का आलम है। कचरा प्रबंधन के लिए NGO को दी गई जिम्मेदारी भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि 1 करोड़ 15 लाख के टेंडर में पारदर्शिता की कमी दिखाई देती है।
स्थानीय नेताओं का आक्रोश
युवा जदयू के प्रदेश महासचिव ने नगर परिषद के अधिकारियों पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि कचरा डंपिंग के लिए मौखिक आदेश तभी दिए जाते हैं, जब अधिकारियों को “मलाई खानी” होती है। उन्होंने मांग की कि ग्यारह नंबर लख पर कचरे में आग लगने की घटना के लिए स्वच्छता पदाधिकारी के खिलाफ FIR दर्ज की जाए, क्योंकि इससे पर्यावरण और जल-जीवन-हरियाली योजना को नुकसान पहुंचा।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि 600 कर्मचारियों का दावा कितना सही है, जब स्थानीय लोग और पार्षद कम कर्मचारियों की बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि कचरा प्रबंधन में काली कमाई का खेल चल रहा है, जिसकी गंध पूरे शहर में फैल रही है।
किला मैदान की सफाई: पहले भी उठ चुके हैं कदम
इससे पहले, मार्च 2025 में किला मैदान के पश्चिम नहर पुलिया के पास कचरे के ढेर को लेकर स्थानीय लोगों ने शिकायत की थी। तब नगर परिषद ने त्वरित कार्रवाई करते हुए कचरा हटवाया था, जिससे राहगीरों और फुटपाथी दुकानदारों को राहत मिली थी। लेकिन अब फिर से कचरा डंपिंग की समस्या उभर आई है, जिसने प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं।
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स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि कचरा प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं, जैसे कचरा पृथक्करण और रीसाइक्लिंग। साथ ही, मौखिक आदेशों की जगह लिखित आदेश और पारदर्शी प्रक्रिया लागू की जाए।
पर्यावरण और ऐतिहासिक धरोहर पर खतरा
किला मैदान में कचरा डंपिंग न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरा है, बल्कि यह 971 साल पुरानी ऐतिहासिक धरोहर को भी नुकसान पहुंचा रहा है। कचरे के ढेर से उठने वाली दुर्गंध और प्रदूषण स्थानीय लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। ग्यारह नंबर लख पर कचरे में लगी आग ने हरे-भरे पेड़ों को नष्ट कर दिया, जिससे पर्यावरण को भारी क्षति हुई।
स्थानीय लोग और पर्यावरणविद मांग कर रहे हैं कि कचरा डंपिंग के लिए वैकल्पिक स्थान तलाशे जाएं और ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित किया जाए। साथ ही, ठेकेदारों पर जुर्माने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए, ताकि भ्रष्टाचार की आशंका खत्म हो।
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बक्सर नगर परिषद में कचरा प्रबंधन और स्वच्छता को लेकर चल रहा विवाद गंभीर सवाल उठा रहा है। स्वच्छता पदाधिकारी के मौखिक आदेश और 15 लाख रुपये के जुर्माने के दावे ने पारदर्शिता की कमी को उजागर किया है। किला मैदान जैसे ऐतिहासिक स्थल पर कचरा डंपिंग और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली घटनाएं चिंता का विषय हैं। क्या नगर परिषद इस समस्या का स्थायी समाधान निकालेगी? क्या जिला प्रशासन मौखिक आदेशों की जगह लिखित और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाएगा? यह समय और प्रशासन की कार्रवाई तय करेगी।
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