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इंसानियत को झकझोरने वाली घटना: गांव वालों की दरिंदगी, एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जलाया!

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पूर्णिया, बिहार – बिहार के पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में अंधविश्वास की भेंट चढ़कर एक ही परिवार के पांच लोगों की नृशंस हत्या ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। रविवार, 6 जुलाई 2025 की रात करीब 10 बजे, गांव के कुछ लोगों ने डायन होने के शक में बाबूलाल उरांव के परिवार पर हमला किया, उन्हें बेरहमी से पीटा और जिंदा जला दिया। इस भयावह हत्याकांड को छिपाने के लिए शवों को बोरे में भरकर गांव के पास घिसरिया बहियार के जलकुंभी से भरे तालाब में फेंक दिया गया। इस घटना ने न केवल मानवता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि बिहार में अंधविश्वास और सामूहिक हिंसा की गहरी जड़ों को भी उजागर किया है।

घटना का भयावह विवरण

मृतकों की पहचान बाबूलाल उरांव (50), उनकी पत्नी सीता देवी (48), उनकी मां कातो देवी (65), उनके बेटे मनजीत उरांव (25), और बहू रानी देवी (23) के रूप में हुई है। यह परिवार पूर्णिया के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के रजीगंज पंचायत के टेटगामा गांव के वार्ड-10 में रहता था और आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखता था। गांव वालों को लंबे समय से सीता देवी पर डायन होने का शक था, और हाल के महीनों में गांव में बच्चों की असामयिक मृत्यु के बाद यह शक और गहरा गया।

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रविवार रात, गांव के प्रमुख नकुल उरांव के नेतृत्व में करीब 200 लोगों की भीड़ ने एक बैठक बुलाई, जिसमें सीता देवी को डायन घोषित किया गया। इसके बाद, 40-50 लोगों की भीड़ बाबूलाल उरांव के घर पर पहुंची। भीड़ ने गाली-गलौज करते हुए परिवार के सभी सदस्यों को घर से बाहर घसीटा, बांस और लाठियों से उनकी बेरहमी से पिटाई की, और फिर पेट्रोल छिड़ककर जिंदा जला दिया। हत्याकांड के बाद, शवों को बोरे में भरकर घिसरिया बहियार के तालाब में जलकुंभी के बीच छिपा दिया गया।

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चश्मदीद की आपबीती: सोनू की गवाही

इस हत्याकांड का एकमात्र चश्मदीद बाबूलाल का 16 वर्षीय बेटा सोनू है, जो किसी तरह झाड़ियों में छिपकर अपनी जान बचा पाया। सोनू ने बताया कि उसकी आंखों के सामने पूरे परिवार को पीट-पीटकर और जलाकर मार डाला गया। उसने कहा, “गांव के लोग मेरी मां को डायन कह रहे थे। नकुल उरांव ने सबको भड़काया। मेरे सामने मेरे माता-पिता, दादी, भाई और भाभी को मार डाला गया। मैं डर के मारे झाड़ियों में छिप गया।”

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सोनू ने अपनी ननिहाल पहुंचकर इस घटना की जानकारी दी, जिसके बाद सोमवार सुबह 5 बजे मुफस्सिल थाना पुलिस को सूचना मिली। सोनू की गवाही के आधार पर पुलिस ने त्वरित कार्रवाई शुरू की और शवों की तलाश की।

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अंधविश्वास और तांत्रिक की भूमिका

पुलिस जांच में सामने आया कि इस हत्याकांड के पीछे अंधविश्वास के साथ-साथ एक स्थानीय तांत्रिक की भी भूमिका थी। गांव के नकुल उरांव ने तांत्रिक के कहने पर लोगों को भड़काया और सीता देवी को डायन करार दिया। गांव में हाल ही में चार-पांच बच्चों की मृत्यु हुई थी, और एक ग्रामीण रामदेव उरांव के बेटे की झाड़-फूंक के दौरान मृत्यु हो गई थी। इस घटना को गांव वालों ने सीता देवी और उनके परिवार से जोड़ दिया, जिसके चलते यह क्रूर हत्याकांड हुआ।

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पूर्णिया के इतिहास में डायन के आरोप में एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जलाने की यह पहली घटना है। यह घटना बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास की गहरी जड़ों को दर्शाती है, जो शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण आज भी समाज को प्रभावित कर रही है।

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पुलिस की कार्रवाई और जांच

घटना की सूचना मिलते ही पूर्णिया पुलिस अधीक्षक स्वीटी सहरावत, एएसपी आलोक रंजन, और एसडीपीओ पंकज कुमार शर्मा घटनास्थल पर पहुंचे। पुलिस ने डॉग स्क्वायड और फॉरेंसिक साइंस लैब (FSL) की मदद से शवों की तलाश शुरू की। सोमवार शाम तक पांचों शव घिसरिया बहियार के तालाब से बरामद कर लिए गए, जो 80-85% तक जल चुके थे। शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए नालंदा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल भेजा गया।

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पुलिस ने नकुल उरांव और सन्नाउल्लाह (जिन्होंने शवों को ठिकाने लगाने के लिए ट्रैक्टर उपलब्ध कराया) सहित दो लोगों को हिरासत में लिया है। 223 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई है, जिनमें से अधिकांश गांव छोड़कर फरार हैं। पूर्णिया के डीएम अंशुल कुमार ने मंगलवार को कप्तान पुल पर आदिवासी रीति-रिवाज से शवों का अंतिम संस्कार कराया।

एसपी स्वीटी सहरावत ने कहा, “यह एक अमानवीय और अंधविश्वास से प्रेरित घटना है। हमने मुख्य आरोपियों को हिरासत में लिया है और बाकी फरार लोगों की तलाश जारी है। इस मामले में सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

सियासी तनाव और सामाजिक आक्रोश

इस हत्याकांड ने बिहार में सियासी घमासान मचा दिया है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “बिहार में अंधविश्वास और अराजकता का बोलबाला है। यह सरकार की नाकामी का सबूत है कि एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जला दिया गया।” वहीं, बीजेपी विधायक विजय खेमका ने इस घटना को दुखद बताते हुए सख्त कार्रवाई की मांग की। पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने पीड़ित परिवार के बचे हुए सदस्यों से मुलाकात की और उन्हें न्याय का भरोसा दिलाया।

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सामाजिक संगठनों और स्थानीय लोगों में भी इस घटना को लेकर भारी आक्रोश है। सोनू ने बताया कि गांव के लोग अब डर के मारे घर छोड़कर भाग गए हैं, और गांव में सन्नाटा पसरा है।

अंधविश्वास: समाज पर एक कलंक

यह घटना बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास की गहरी जड़ों को उजागर करती है। पूर्णिया के डीएम अंशुल कुमार ने कहा, “21वीं सदी में डायन के नाम पर इस तरह की क्रूरता अस्वीकार्य है। हमें शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से समाज को बदलना होगा।” सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस घटना को अशिक्षा और सामाजिक पिछड़ेपन का परिणाम बताया और सरकार से अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने की मांग की।

न्याय और सामाजिक बदलाव की जरूरत

टेटगामा गांव की इस घटना ने न केवल एक परिवार को उजाड़ दिया, बल्कि समाज में व्याप्त अंधविश्वास और सामूहिक हिंसा की भयावहता को सामने लाया है। पुलिस की त्वरित कार्रवाई ने कुछ राहत दी है, लेकिन असली चुनौती है समाज को अंधविश्वास के जाल से मुक्त करना। सरकार ने पीड़ित परिवार के लिए मुआवजे की घोषणा की है, और जांच में शामिल सभी आरोपियों को सजा दिलाने का वादा किया है।

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सोनू और ललित जैसे बचे हुए परिवार के सदस्य अब न्याय की उम्मीद में हैं। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारा समाज वाकई प्रगति की राह पर है, या अभी भी अंधविश्वास की अंधेरी गलियों में भटक रहा है। पूर्णिया की जनता और पूरे देश की नजर अब इस बात पर है कि इस मामले में कितनी जल्दी और प्रभावी ढंग से न्याय मिलता है।


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