बक्सर नगर परिषद कार्यालय में हाल ही में एक भ्रामक और विवादास्पद स्थिति सामने आई। यह विवाद तब शुरू हुआ जब नए कार्यपालक पदाधिकारी (ईओ) ऋत्विक कुमार ने अचानक कार्यभार संभाला। इस घटना ने न केवल कार्यालय के कामकाज में उथल-पुथल मचाई, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं और नियमों पर भी सवाल उठाए।

नए ईओ का आगमन: ऋत्विक कुमार की नियुक्ति
16 अगस्त 2025 को, जन्माष्टमी के अवकाश के दिन, ऋत्विक कुमार ने बक्सर नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी (ईओ) के रूप में कार्यभार संभाल लिया। यह नियुक्ति कई मायनों में असामान्य थी, क्योंकि यह रविवार को हुई, जो सरकारी कामकाज के लिए अवकाश का दिन होता है। ऋत्विक कुमार ने दावा किया कि उनके पास नियुक्ति पत्र है, जिसके आधार पर उन्होंने तुरंत कार्यभार ग्रहण किया।

उन्होंने कार्यालय पहुंचकर स्वच्छता अधिकारी रवि सिंह और अन्य कर्मचारियों के साथ बैठक की। इस दौरान उन्होंने शहर की स्वच्छता, कचरा निस्तारण, नल-जल योजना और एसटीपी जैसे मुद्दों पर चर्चा की। ऋत्विक ने कहा कि बक्सर एक सांस्कृतिक और धार्मिक शहर है, और उनकी प्राथमिकता इसे स्वच्छ और सुंदर बनाना है। हालांकि, उनकी इस नियुक्ति ने तुरंत विवाद को जन्म दिया।
मनीष कुमार की स्थिति: अनुपस्थिति और असमंजस
ऋत्विक कुमार के आने से पहले, मनीष कुमार बक्सर नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी थे। उस समय मनीष कुमार व्यक्तिगत कारणों से अवकाश पर थे। कुछ सूत्रों के अनुसार, उन्हें पद से हटाने की बात कही गई थी, लेकिन उन्होंने औपचारिक रूप से कार्यभार नहीं सौंपा था। इस स्थिति ने नेतृत्व में एक खालीपन पैदा कर दिया, जिसका फायदा उठाकर ऋत्विक कुमार ने स्वत: कार्यभार ग्रहण कर लिया।

मनीष कुमार ने इस कदम को अनुचित ठहराया। उन्होंने कहा कि जन्माष्टमी के अवकाश के दिन कार्यभार ग्रहण करना और बिना औपचारिक हस्तांतरण के कार्यालय संभालना नियमों के खिलाफ है। मनीष ने यह भी बताया कि उस समय जिला और राज्य स्तर पर स्वच्छ भारत मिशन (एसआईआर) का कार्य चल रहा था, जिसके कारण अधिकारियों के तबादले और नियुक्तियों में देरी हो रही थी।
विवाद और कानूनी लड़ाई
नियुक्ति पर सवाल और प्रोटोकॉल का उल्लंघन
ऋत्विक कुमार की नियुक्ति ने कई सवाल खड़े किए। सामान्य तौर पर, कार्यपालक पदाधिकारी की नियुक्ति और कार्यभार हस्तांतरण एक औपचारिक प्रक्रिया के तहत होता है। लेकिन इस मामले में, ऋत्विक ने बिना किसी हस्तांतरण के कार्यभार संभाला, जिसे नियमों का उल्लंघन माना गया। मनीष कुमार ने इसे गैरकानूनी बताते हुए इस नियुक्ति को चुनौती देने का फैसला किया।
मनीष कुमार की कानूनी चुनौती
मनीष कुमार ने इस मामले को पटना हाईकोर्ट में ले गए। उन्होंने ऋत्विक कुमार की नियुक्ति को अवैध बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की। हाईकोर्ट में दोनों पक्षों के वकीलों ने अपनी दलीलें पेश कीं। मनीष कुमार ने तर्क दिया कि उनकी अनुपस्थिति में बिना उनकी सहमति के नया ईओ नियुक्त करना और कार्यभार सौंपना नियमों के खिलाफ है।
हाईकोर्ट का फैसला
पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के बाद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने ऋत्विक कुमार की नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया और उनके नियुक्ति आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने मनीष कुमार को बक्सर नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी के रूप में पुनर्बहाल करने का आदेश दिया। यह फैसला प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और नियमों के पालन की अहमियत को दर्शाता है।
कार्यालय में तनाव और टकराव
हाईकोर्ट के फैसले के बाद जब मनीष कुमार अपने पद पर वापस लौटे, तो स्थिति और जटिल हो गई। ऋत्विक कुमार ने तुरंत कार्यालय छोड़ने से इनकार कर दिया। उन्होंने दावा किया कि उनके पास विभाग से अलग आदेश हैं। दोनों अधिकारियों के बीच घंटों तक तीखी बहस चली। दोनों ही यह दावा कर रहे थे कि वे ही वैध कार्यपालक पदाधिकारी हैं। इस टकराव ने कार्यालय के कर्मचारियों और स्थानीय लोगों के बीच असमंजस की स्थिति पैदा कर दी।

इस दौरान कार्यालय में कुछ बदलाव भी देखे गए। पुरानी तस्वीरें और बक्सर की ऐतिहासिक विरासत को दर्शाने वाले चित्र हटा दिए गए। उनकी जगह नए चित्र और बैनर लगाए गए, जो एक नए शुरुआत का प्रतीक माने जा रहे थे। लेकिन यह बदलाव भी विवाद का हिस्सा बन गया, क्योंकि इसे ऋत्विक कुमार के कार्यकाल से जोड़ा गया।
इस विवाद से सबक
बक्सर नगर परिषद का यह विवाद प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और नियमों के पालन की जरूरत को रेखांकित करता है। ऋत्विक कुमार की नियुक्ति और मनीष कुमार की कानूनी लड़ाई ने यह स्पष्ट किया कि बिना उचित प्रक्रिया के की गई नियुक्तियां न केवल विवाद को जन्म देती हैं, बल्कि प्रशासनिक विश्वास को भी कमजोर करती हैं।
हाईकोर्ट का फैसला इस मामले में एक महत्वपूर्ण कदम रहा। इसने न केवल मनीष कुमार को उनका हक दिलाया, बल्कि भविष्य में ऐसी अनियमितताओं को रोकने के लिए एक उदाहरण भी पेश किया। यह घटना सभी सरकारी कार्यालयों के लिए एक सबक है कि नेतृत्व परिवर्तन में पारदर्शिता और नियमों का पालन अनिवार्य है।
बक्सर के लिए इसका महत्व
बक्सर एक सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण शहर है। नगर परिषद का कार्यभार संभालने वाला कार्यपालक पदाधिकारी शहर की स्वच्छता, जल आपूर्ति, और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए जिम्मेदार होता है। इस तरह के विवाद न केवल प्रशासनिक कार्यों में बाधा डालते हैं, बल्कि स्थानीय लोगों के बीच असमंजस और अविश्वास भी पैदा करते हैं।
मनीष कुमार की पुनर्बहाली से यह उम्मीद जगी है कि नगर परिषद अब सुचारू रूप से काम करेगा। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह की घटनाएं भविष्य में नहीं होनी चाहिए, ताकि शहर के विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।

बक्सर नगर परिषद में नए कार्यपालक पदाधिकारी ऋत्विक कुमार की नियुक्ति और मनीष कुमार की कानूनी लड़ाई ने प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की अहमियत को सामने लाया। हाईकोर्ट के फैसले ने यह सुनिश्चित किया कि नियमों का पालन हो और मनीष कुमार को उनका हक मिले। यह विवाद बक्सर के लिए एक सबक है कि नेतृत्व परिवर्तन में नियमों का पालन और स्पष्टता जरूरी है। यह घटना स्थानीय प्रशासन को और मजबूत करने का अवसर देती है, ताकि बक्सर की जनता को बेहतर सेवाएं मिल सकें और शहर का विकास निर्बाध रूप से हो सके।
jansancharbharat.com पर पढ़ें ताजा एंटरटेनमेंट, राष्ट्रीय समाचार (National News), खेल, मनोरंजन, धर्म, लाइस्टाइल, हेल्थ, शिक्षा से जुड़ी हर खबर। ब्रेकिंग न्यूज और हर खबर की अपडेट के लिए जनसंचार भारत को होम पेज पर जोड़ कर अपना अनुभव शानदार बनाएं।
Discover more from Jansanchar Bharat
Subscribe to get the latest posts sent to your email.