बिहार की सियासत में नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्ते की कहानी किसी रोमांचक किताब से कम नहीं है। दोनों नेताओं के बीच कभी गहरी दोस्ती थी, कभी तल्खी की खाई, और फिर दोस्ती की नई शुरुआत। यह रिश्ता उतार-चढ़ाव, गठबंधन और टकराव का प्रतीक रहा है।

शुरुआती दोस्ती: एक मजबूत गठबंधन की नींव
नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी का रिश्ता 1990 के दशक में तब शुरू हुआ, जब नीतीश समता पार्टी के प्रमुख नेता थे और बीजेपी के साथ गठबंधन में थे। साल 2000 में नीतीश ने बीजेपी के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, हालांकि वह केवल सात दिन तक इस पद पर रह सके। इस दौरान नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। साल 2003 में नीतीश, जो उस समय केंद्रीय रेल मंत्री थे, ने गुजरात में एक रेल परियोजना के उद्घाटन के मौके पर नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी। उन्होंने मोदी को ‘संभावित राष्ट्रीय नेता’ और ‘विकास पुरुष’ कहा था। यह वह दौर था जब दोनों नेताओं के बीच सौहार्द और सहयोग की भावना थी।
2010: रिश्तों में पहली दरार
साल 2010 में दोनों नेताओं के बीच रिश्तों में खटास की शुरुआत हुई। बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पटना में हो रही थी, और नीतीश ने बीजेपी नेताओं को डिनर के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन गुजरात सरकार की ओर से बिहार को दी गई बाढ़ राहत सहायता के लिए एक विज्ञापन में नीतीश और मोदी की तस्वीर छपी, जिसे नीतीश ने बिहार के अपमान के रूप में लिया। नाराज होकर उन्होंने डिनर का निमंत्रण रद्द कर दिया। इस घटना ने दोनों के बीच तनाव को जन्म दिया।

2013: गठबंधन का टूटना और तीखी बयानबाजी
2013 में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव के लिए अपने अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया, जिसे नीतीश ने स्वीकार नहीं किया। 2002 के गुजरात दंगों के बाद नीतीश ने मोदी को ‘सांप्रदायिक’ नेता करार देते हुए बीजेपी के साथ 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ लिया। नीतीश ने अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया। 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश की जेडीयू को करारी हार का सामना करना पड़ा, जबकि बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाई और मोदी प्रधानमंत्री बने।
2015: महागठबंधन की जीत और नया टकराव
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश ने लालू प्रसाद यादव की राजद और कांग्रेस के साथ ‘महागठबंधन’ बनाकर बीजेपी को करारी शिकस्त दी। इस दौरान मोदी ने बिहार में कई रैलियां कीं, लेकिन नीतीश की रणनीति और गठबंधन की ताकत ने बीजेपी को पीछे छोड़ दिया। हालांकि, यह गठबंधन ज्यादा समय तक नहीं टिका।
2017: दोस्ती की वापसी
साल 2017 में नीतीश ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राजद से गठबंधन तोड़कर फिर से बीजेपी के साथ सरकार बनाई। इस दौरान नीतीश और मोदी की नजदीकियां फिर से बढ़ीं। दोनों नेताओं की हंसी-मजाक और एक साथ मंच साझा करने की तस्वीरें सुर्खियों में रहीं। 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी ने एक साथ चुनाव लड़ा और सरकार बनाई, हालांकि जेडीयू का प्रदर्शन कमजोर रहा।
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2022-2024: फिर अलगाव और फिर वापसी
2022 में नीतीश ने बीजेपी पर उनकी पार्टी को तोड़ने का आरोप लगाकर गठबंधन तोड़ लिया और राजद के साथ फिर से सरकार बनाई। इस दौरान नीतीश ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन 2024 में, जब ‘इंडिया’ गठबंधन में संयोजक के पद पर सहमति नहीं बनी, नीतीश ने एक बार फिर बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया। जनवरी 2024 में नीतीश ने नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, और मोदी ने उन्हें बधाई दी।
हालिया नजदीकियां: विकास के लिए एकजुट
हाल ही में, अगस्त 2025 में, नरेंद्र मोदी ने बिहार के मोकामा-सिमरिया में देश के सबसे चौड़े छह लेन वाले पुल का उद्घाटन किया। इस दौरान नीतीश और मोदी की जुगलबंदी फिर से चर्चा में रही। दोनों नेता एक-दूसरे का हाथ पकड़कर जनता का अभिवादन करते नजर आए। नीतीश ने बिहार के विकास में केंद्र के सहयोग की सराहना की, और मोदी ने बिहार के लिए 48,520 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की सौगात दी।
बिहार के लिए साझा दृष्टिकोण
नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी का रिश्ता सियासी उतार-चढ़ाव का प्रतीक है, लेकिन दोनों नेताओं ने बिहार के विकास के लिए कई बार एकजुट होकर काम किया है। नीतीश की सुशासन और विकास की नीतियों के साथ-साथ मोदी की केंद्र सरकार की योजनाओं ने बिहार में सड़कों, बिजली, और बुनियादी ढांचे में सुधार लाने में योगदान दिया है।

नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी का रिश्ता दोस्ती, दुश्मनी, और फिर दोस्ती की एक अनोखी कहानी है। यह रिश्ता सियासत की जरूरतों और परिस्थितियों के हिसाब से बदलता रहा है। बिहार की जनता के लिए यह दोनों नेताओं की साझेदारी भविष्य में और क्या रंग लाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा।
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