चौसा-बक्सर रेल खंड हादसा ने गुरुवार की दोपहर बिहार के बक्सर जिले में एक भयावह मंजर पेश किया। एक अज्ञात युवक की ट्रेन से गिरकर मौत ने न केवल एक परिवार को झकझोर दिया, बल्कि प्रशासनिक तालमेल की भयंकर कमी को भी उजागर कर दिया। यह घटना रेलवे गेट 76बी और पोल 671/9 के बीच हुई, जहां मानवीय संवेदना और जिम्मेदारी की कमी ने स्थिति को और गंभीर बना दिया।

हादसे का विवरण और युवक की मौत
लगभग 30 वर्षीय यह युवक अप सिकंदराबाद एक्सप्रेस के गेट पर लटककर यात्रा कर रहा था। चौसा स्टेशन के पास असंतुलन के कारण वह ट्रेन से गिर पड़ा और मौके पर ही उसकी दर्दनाक मौत हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, यह हादसा दोपहर के समय हुआ, लेकिन इसके बाद की घटनाओं ने इस त्रासदी को और भयावह बना दिया। युवक की पहचान अभी तक नहीं हो पाई है, जिससे रहस्य गहराता जा रहा है।
जीआरपी और मुफस्सिल थाना का विवाद
हादसे की सूचना मिलते ही बक्सर जीआरपी और मुफस्सिल थाना पुलिस मौके पर पहुंची। लेकिन इसके बाद शुरू हुआ एक शर्मनाक विवाद। जीआरपी प्रभारी विजेंद्र कुमार ने दावा किया कि घटनास्थल आउटर सिग्नल के बाहर है, इसलिए यह मुफस्सिल थाना की जिम्मेदारी है। दूसरी ओर, मुफस्सिल थाना पुलिस ने तर्क दिया कि चूंकि हादसा रेलवे ट्रैक पर हुआ, यह जीआरपी का मामला है। इस आपसी खींचतान ने मृतक के शव को तीन घंटे तक ट्रैक किनारे पड़े रहने को मजबूर कर दिया।
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नीय लोगों का आक्रोश
चौसा-बक्सर रेल खंड हादसा ने स्थानीय लोगों में गुस्सा भड़का दिया। समाजसेवी राजेश पांडेय ने इस घटना को “अमानवीय और शर्मनाक” बताया और कहा, “चाहे जीआरपी हो या स्थानीय पुलिस, इंसानियत पहले दिखानी चाहिए थी। शव को लावारिस छोड़ना अस्वीकार्य है।” भीड़ का आक्रोश देखते हुए स्थानीय लोगों ने प्रशासन से त्वरित कार्रवाई की मांग की, लेकिन शुरुआती लापरवाही ने उनकी नाराजगी को और बढ़ा दिया।
पोस्टमार्टम में देरी और कार्रवाई
तीन घंटे की देरी के बाद वरिष्ठ अधिकारियों को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके बाद मुफस्सिल थाना ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। हालांकि, इस देरी ने प्रशासनिक असंवेदनशीलता को उजागर किया। मृतक की पहचान अभी तक नहीं हो पाई है, और पुलिस जांच में जुटी है। यह सवाल उठता है कि क्या ऐसी घटनाओं में त्वरित कार्रवाई के लिए कोई स्पष्ट प्रोटोकॉल मौजूद है?
प्रशासनिक कमी और सवाल
चौसा-बक्सर रेल खंड हादसा केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि प्रशासनिक असमंजस और जिम्मेदारी से पलायन का सबूत है। रेल प्रशासन की चुप्पी और पुलिस इकाइयों का एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ना आम लोगों में असुरक्षा की भावना को बढ़ाता है। क्या रेलवे गेट 76बी जैसे संवेदनशील स्थानों पर पर्याप्त सुरक्षा और निगरानी की व्यवस्था है? यह घटना यह सोचने पर मजबूर करती है कि मानवीय जीवन की कीमत कितनी कम हो गई है।
चौसा-बक्सर रेल खंड हादसा ने बिहार में रेल सुरक्षा और प्रशासनिक समन्वय पर गंभीर सवाल उठाए हैं। मृतक के परिवार को न्याय और शांति देने के लिए त्वरित जांच जरूरी है। साथ ही, ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश और बेहतर तालमेल की स्थापना अपरिहार्य है। क्या राज्य सरकार और रेल प्रशासन इस सबक से सीख लेंगे? अधिक जानकारी के लिए रेलवे बोर्ड और हमारी समाचार सेक्शन देखें।
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