बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की गहमागहमी के बीच बक्सर विधानसभा सीट चर्चा और विवाद का केंद्र बन चुकी है। यह सीट भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए जहां एक बड़ा अवसर है, वहीं चुनौतियों का पहाड़ भी खड़ा है। बक्सर शहर के चौराहों से लेकर ग्रामीण गलियों तक नेताओं के बैनर-पोस्टर और शक्ति प्रदर्शन की होड़ मची है। धनसोइ में हाल ही में आयोजित एनडीए सम्मेलन ने पार्टी के भीतर गुटबाजी को उजागर किया, तो दूसरी ओर विश्वामित्र सेना जैसे सामाजिक संगठन ने स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता का आक्रोश जगाया है।

बक्सर: सियासत का गढ़
बक्सर विधानसभा सीट ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध होने के साथ-साथ बिहार की राजनीति में भी खास महत्व रखती है। यह वह भूमि है, जहां भगवान राम को पराक्रमी बनाने वाले महर्षि विश्वामित्र का आश्रम था। लेकिन आज यह सीट सियासी जोड़-तोड़ और स्थानीय मुद्दों की वजह से सुर्खियों में है। बक्सर की जनता अब केवल वादों और नारों से संतुष्ट नहीं है। उन्हें ठोस विकास, रोजगार, और अपनी सांस्कृतिक पहचान की रक्षा चाहिए।

चुनाव नजदीक आते ही बक्सर की सड़कों पर नेताओं के बैनर-पोस्टर और कटआउट की बाढ़ आ गई है। हर गली-नुक्कड़ पर “जनसेवक” बनने की होड़ मची है, लेकिन कई दावेदारों को जनता पहचानती तक नहीं। ग्रामीण इलाकों में लोग हैरान हैं कि ये नए चेहरे, जो पहले कभी गांवों में नहीं दिखे, अब नेतृत्व का दावा कैसे कर रहे हैं?
एनडीए सम्मेलन: धनसोइ में गुटबाजी का खुलासा
हाल ही में धनसोइ में आयोजित एनडीए सम्मेलन ने बक्सर में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के भीतर की गुटबाजी को सामने ला दिया। इस सम्मेलन में कुछ स्थानीय दावेदारों को मंच पर जगह नहीं मिली, और एक बड़े नेता से माइक तक छीन लिया गया। यह घटना कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच नाराजगी का कारण बनी। सम्मेलन में मंच पर बैठने की जद्दोजहद और नेताओं के बीच आपसी खींचतान ने यह साफ कर दिया कि टिकट की दौड़ में सब कुछ ठीक नहीं है।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, बक्सर विधानसभा सीट के लिए भाजपा के पास तीन दर्जन से अधिक दावेदार हैं। इनमें युवा, महिला, और वरिष्ठ कार्यकर्ता शामिल हैं। लेकिन टिकट केवल एक को मिलेगा। सवाल यह है कि टिकट से वंचित दावेदार क्या करेंगे? क्या वे पार्टी के साथ खड़े रहेंगे, या भीतरघात कर समीकरण बिगाड़ देंगे?

विपक्ष की सक्रियता: वोट अधिकार यात्रा और जन सुराज
बक्सर में सियासी पारा तब और चढ़ गया, जब विपक्षी दलों ने अपनी गतिविधियां तेज कर दीं। कांग्रेस नेता की वोट अधिकार यात्रा ने बक्सर सहित बिहार के कई इलाकों में जनता को मतदान के अधिकारों के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया। इस यात्रा ने स्थानीय मुद्दों, जैसे बेरोजगारी और विकास की कमी, को उठाकर सत्ताधारी गठबंधन पर दबाव बनाया।
यह भी पढ़ें
- बक्सर में धूमधाम से नामांकन: मुन्ना तिवारी और विश्वनाथ राम ने ली महागठबंधन की सौगात, विशाल सभा में गूंजा सेवा का संकल्प
- बक्सर का तनिष्क ज्योति चौक चमक उठा: धनतेरस-दिवाली पर ट्रेडिशनल और मॉडर्न ज्वेलरी की नई रेंज, 600 रुपये तक प्रति ग्राम छूट!
- बक्सर का गौरव: आरपीएफ उप निरीक्षक दिनेश चौधरी को मिला भारतीय पुलिस पदक, 36 वर्षों की सेवा का सम्मान
दूसरी ओर, जन सुराज अभियान भी बक्सर में सक्रिय हो रहा है। यह अभियान स्थानीय लोगों की समस्याओं को उठाकर और वर्तमान विधायक की जनता से दूरी का फायदा उठाकर अपनी पैठ बनाने की कोशिश में है। इसके अलावा, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कार्यकर्ता भी पूरे जोश के साथ मैदान में उतर चुके हैं। ये सभी गतिविधियां बक्सर की सियासी जंग को और रोमांचक बना रही हैं।
विश्वामित्र सेना: नई शक्ति का उभार
बक्सर की राजनीति में एक नई ताकत के रूप में विश्वामित्र सेना उभर रही है। यह संगठन महर्षि विश्वामित्र कॉरिडोर, सनातन संस्कृति की उपेक्षा, और किसानों की समस्याओं को लेकर आंदोलनरत है। उनका कहना है कि बक्सर, जो भगवान राम की कर्मभूमि है, को वह सम्मान और विकास नहीं मिला, जो इसे मिलना चाहिए था।

विश्वामित्र सेना का आरोप है कि जहां अयोध्या में राम मंदिर और मिथिला में सीता माता के मंदिर के लिए अरबों रुपये खर्च किए गए, वहीं बक्सर को नजरअंदाज किया गया। संगठन ने मांग की है कि बक्सर में महर्षि विश्वामित्र कॉरिडोर बनाया जाए, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिले और स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर मिलें। इसके अलावा, वे बक्सर को आयुर्वेद की जननी के रूप में स्थापित करने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि यह वह भूमि है जहां च्यवन ऋषि का आश्रम था।
जनता का आक्रोश: विकास और पहचान की मांग
बक्सर की जनता अब केवल वादों से संतुष्ट नहीं है। स्थानीय लोग रोजगार, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, उच्च शिक्षा, और किसानों के लिए उचित सुविधाएं चाहते हैं। विश्वामित्र सेना ने इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाकर जनता के आक्रोश को आवाज दी है। उनका कहना है कि बक्सर में चार-लेन सड़कों का निर्माण तो हुआ, लेकिन इसका फायदा मुख्य रूप से पूंजीपतियों को मिल रहा है। स्थानीय युवाओं को रोजगार और बक्सर को उसकी सांस्कृतिक पहचान चाहिए।

किसानों की समस्याएं भी बक्सर में एक बड़ा मुद्दा हैं। फसलों के खराब होने और बाढ़ के डर में जी रहे किसानों को ठोस समाधान चाहिए। जनता का यह आक्रोश अब सियासी दलों के लिए चुनौती बन रहा है।
टिकट की जंग: क्या होगा भविष्य?
भाजपा के लिए बक्सर विधानसभा सीट पर उम्मीदवार का चयन आसान नहीं होगा। तीन दर्जन से अधिक दावेदारों की भीड़ में से एक को चुनना और बाकियों को मनाना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। अगर पार्टी समय रहते एक सर्वमान्य चेहरा सामने नहीं लाती, तो भीतरघात और नाराजगी का खतरा बढ़ सकता है।
वहीं, विश्वामित्र सेना जैसे संगठनों का उभार और विपक्ष की सक्रियता ने बक्सर को एक जटिल रणभूमि बना दिया है। जनता अब उन नेताओं को चाहती है, जो उनकी समस्याओं को समझें और ठोस समाधान दें। बक्सर की सियासत अब केवल टिकट और मंच तक सीमित नहीं रही; यह सांस्कृतिक अस्मिता, स्थानीय विकास, और नेतृत्व की पारदर्शिता का सवाल बन चुकी है।

बक्सर विधानसभा सीट बिहार चुनाव 2025 में सबसे चर्चित और संवेदनशील सीटों में से एक बन चुकी है। एनडीए के भीतर गुटबाजी, विपक्ष की सक्रियता, और विश्वामित्र सेना जैसे सामाजिक संगठनों का उभार इस सीट को सियासी जंग का केंद्र बना रहा है। बक्सर की जनता अब केवल वादों और बैनर-पोस्टरों से संतुष्ट नहीं है। उन्हें चाहिए ठोस विकास, रोजगार, और अपनी सांस्कृतिक पहचान का सम्मान। जो भी दल या नेता इस सीट पर जीत हासिल करना चाहता है, उसे पहले जनता का विश्वास जीतना होगा। बक्सर की सियासत अब नारों और मंचों से ऊपर उठ चुकी है—यह अब जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं का सवाल है।
jansancharbharat.com पर पढ़ें ताजा एंटरटेनमेंट, राष्ट्रीय समाचार (National News), खेल, मनोरंजन, धर्म, लाइस्टाइल, हेल्थ, शिक्षा से जुड़ी हर खबर। ब्रेकिंग न्यूज और हर खबर की अपडेट के लिए जनसंचार भारत को होम पेज पर जोड़ कर अपना अनुभव शानदार बनाएं।
Discover more from Jansanchar Bharat
Subscribe to get the latest posts sent to your email.