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बिहार चुनाव 2025: आधार, राशन कार्ड, वोटर आईडी खारिज – क्या है SIR विवाद?

Controversy before Bihar elections
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बिहार में इस साल नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट में 21 जुलाई 2025 को एक हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट किया कि आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मतदाता पात्रता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के 10 जुलाई के आदेश के जवाब में दाखिल किया गया, जिसमें कोर्ट ने आयोग से इन दस्तावेजों को सत्यापन प्रक्रिया में शामिल करने पर विचार करने को कहा था। इस लेख में हम इस विवाद, आयोग के तर्क, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों और विपक्ष की आपत्तियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

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विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) क्या है?

विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत मतदाता सूची को नए सिरे से सत्यापित किया जाता है। बिहार में इस प्रक्रिया के तहत बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं से जानकारी एकत्र कर रहे हैं। इसमें मतदाताओं को अपना नाम, पता, जन्मतिथि और अन्य विवरण के साथ 11 निर्धारित दस्तावेजों में से एक जमा करना होगा। आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना और अपात्र व्यक्तियों को हटाना है। हालांकि, इस प्रक्रिया की समयसीमा और दस्तावेजों की सूची को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।

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सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने 10 जुलाई 2025 को इस मामले की सुनवाई की थी। कोर्ट ने SIR प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन आयोग से आधार कार्ड, वोटर आईडी (EPIC) और राशन कार्ड को सत्यापन के लिए वैध दस्तावेजों के रूप में शामिल करने पर विचार करने का सुझाव दिया। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस प्रक्रिया को शुरू करने का समय उचित क्यों नहीं है। कोर्ट ने आयोग को 21 जुलाई तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था, और अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई 2025 को होगी।

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चुनाव आयोग का हलफनामा और तर्क

चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में स्पष्ट किया कि आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मतदाता पात्रता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसके पीछे आयोग ने निम्नलिखित तर्क दिए:

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1. आधार कार्ड: नागरिकता का प्रमाण नहीं

आयोग ने कहा कि आधार कार्ड केवल पहचान का प्रमाण है, न कि नागरिकता का। आधार कार्ड भारत में 182 दिनों तक निवास करने वाले किसी भी व्यक्ति को जारी किया जा सकता है, चाहे वह भारतीय नागरिक हो या नहीं। संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मतदाता सूची में शामिल होने के लिए भारतीय नागरिकता और 18 वर्ष की आयु अनिवार्य है। इसलिए, आधार को पात्रता की जांच के लिए उपयुक्त नहीं माना गया।

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2. राशन कार्ड: नकली दस्तावेजों का खतरा

आयोग ने राशन कार्ड को अविश्वसनीय बताया, क्योंकि देश भर में नकली राशन कार्डों की समस्या गंभीर है। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के नवंबर 2024 के आंकड़ों के अनुसार, देश में 5.8 करोड़ नकली राशन कार्ड पकड़े गए हैं। बिहार के मोतिहारी में हाल ही में एक गिरोह को 2,500 रुपये में नकली राशन कार्ड बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस वजह से आयोग ने राशन कार्ड को सत्यापन के लिए मान्य नहीं माना।

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3. वोटर आईडी (EPIC): पुरानी सूची का हिस्सा

आयोग ने यह भी तर्क दिया कि इलेक्टर्स फोटो आइडेंटिटी कार्ड (EPIC) मौजूदा मतदाता सूची का हिस्सा है, जो अब नए सिरे से तैयार की जा रही है। इसलिए, इसे सत्यापन के लिए प्रमाण के रूप में स्वीकार करना प्रक्रिया को ही निरर्थक बना देगा।

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आयोग ने यह भी जोड़ा कि SIR प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता बनाए रखना और अपात्र व्यक्तियों, जैसे गैर-नागरिकों, मृत व्यक्तियों या दोहरे पंजीकरण वाले मतदाताओं को हटाना है। आयोग ने दावा किया कि यह प्रक्रिया पारदर्शी है और किसी भी मतदाता को बिना उचित प्रक्रिया के सूची से नहीं हटाया जाएगा।

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विपक्ष और याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां

विपक्षी दलों और गैर-सरकारी संगठनों, जैसे एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), ने SIR प्रक्रिया को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया है। उनकी प्रमुख आपत्तियां इस प्रकार हैं:

  • दस्तावेजों की सीमित सूची: विपक्ष का कहना है कि आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे सामान्य दस्तावेजों को अस्वीकार करना अनुचित है। ये दस्तावेज ज्यादातर लोगों, खासकर गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के पास आसानी से उपलब्ध हैं।
  • चुनाव से पहले समयसीमा: SIR प्रक्रिया को विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शुरू करने पर सवाल उठाए गए हैं। विपक्ष का मानना है कि इससे लाखों पात्र मतदाता अपने वोटिंग अधिकार से वंचित हो सकते हैं, क्योंकि उनके पास आवश्यक दस्तावेज जुटाने का समय नहीं होगा।
  • नागरिकता की जांच का डर: कुछ याचिकाकर्ताओं ने इसे “छिपा हुआ एनआरसी” करार दिया है, क्योंकि यह प्रक्रिया नागरिकता की जांच जैसी प्रतीत होती है, जो गृह मंत्रालय का कार्यक्षेत्र है।

याचिकाकर्ताओं में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, एनसीपी (शरद पवार) की सुप्रिया सुले और अन्य शामिल हैं। इनका तर्क है कि 2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं से दोबारा सत्यापन की मांग करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

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SIR प्रक्रिया की प्रगति

चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में बताया कि बिहार में अब तक 90% मतदाताओं ने गणना फॉर्म जमा कर दिए हैं। आयोग ने 1.5 लाख से अधिक बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) और बूथ लेवल ऑफिसरों (BLO) के साथ मिलकर इस प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने का दावा किया है। फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि 25 जुलाई 2025 है, और ड्राफ्ट मतदाता सूची 1 अगस्त को जारी होगी। इसके बाद, मतदाता अपनी आपत्तियां दर्ज कर सकते हैं, और अंतिम सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होगी।

आम लोगों पर प्रभाव

SIR प्रक्रिया को लेकर बिहार के ग्रामीण और हाशिए पर रहने वाले समुदायों में चिंता बढ़ रही है। कई लोगों के पास आयोग द्वारा मांगे गए 11 दस्तावेजों में से कोई भी दस्तावेज नहीं है। विशेष रूप से, दलित, अति पिछड़ा वर्ग (EBC), और अल्पसंख्यक समुदायों को डर है कि उनके नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए, बिहार के कुछ जिलों, जैसे किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार, में आधार कार्ड धारकों की संख्या मतदाताओं से अधिक है, जिसे लेकर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि, आयोग ने स्पष्ट किया कि किसी भी मतदाता को बिना उचित जांच के सूची से नहीं हटाया जाएगा।

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बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर चल रहा विवाद लोकतंत्र की पारदर्शिता और समावेशिता के सवालों को सामने लाता है। चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए जरूरी है, लेकिन विपक्ष और याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह पात्र मतदाताओं को वोटिंग अधिकार से वंचित कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट की 28 जुलाई की सुनवाई इस मामले में महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि यह तय करेगी कि क्या आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों को सत्यापन के लिए स्वीकार किया जाएगा।

यह प्रक्रिया बिहार के लाखों मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण है, और इसके परिणाम न केवल आगामी विधानसभा चुनाव को प्रभावित करेंगे, बल्कि देश में मतदाता सूची संशोधन की भविष्य की प्रक्रियाओं के लिए भी एक मिसाल कायम करेंगे।


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