बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। हर गली-मोहल्ले से लेकर गांव-कस्बों तक में एक ही सवाल गूंज रहा है- “हमारा विधायक कौन होगा?” इस सवाल ने न केवल आम जनता, बल्कि राजनीतिक दलों और कार्यकर्ताओं के बीच भी चर्चा का माहौल बना दिया है। रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में हाल ही में एक नया विवाद सामने आया है, जहां राजपूत समाज ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की जिला कमेटी में अपनी उपेक्षा को लेकर नाराजगी जाहिर की है। इस मुद्दे ने स्थानीय स्तर पर हलचल मचा दी है और लोग इस बात पर बहस कर रहे हैं कि क्या यह विवाद आगामी चुनाव में बीजेपी के लिए चुनौती बन सकता है। आइए, इस खबर को सरल और रोचक तरीके से समझते हैं।

रामगढ़ में जातीय खटास की वजह
रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में राजपूत समाज के कुछ कार्यकर्ताओं ने बीजेपी की जिला कमेटी में अपने समुदाय को शामिल न करने पर सवाल उठाए हैं।

BJP कैमूर पूर्व जिला अध्यक्ष महिला मोर्चा सह जिला कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति सदस्य कुमारी जागृति सिंह ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि रामगढ़ और विशेष रूप से दुर्गावती प्रखंड से राजपूत समाज के किसी भी व्यक्ति को कमेटी में जगह नहीं दी गई। उनका दावा है कि बीजेपी को लगता है कि राजपूत समाज का वोट उन्हें बिना किसी प्रयास के मिल जाएगा, इसलिए उनकी उपेक्षा की जा रही है।
कुमारी जागृति सिंह ने यह भी कहा कि यह उपेक्षा स्थानीय जनप्रतिनिधियों की गलती है, जिन्होंने कमेटी गठन में राजपूत समाज को नजरअंदाज किया। इस बयान ने स्थानीय स्तर पर बहस छेड़ दी है, और कई लोग इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। कुछ लोग कार्यकर्ता की बात का समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ ने इसे बीजेपी की रणनीति का हिस्सा बताते हुए तंज कसा है।
लोगों की प्रतिक्रियाएं और विवाद
इस मुद्दे पर स्थानीय लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ का मानना है कि बीजेपी अब सवर्ण समुदायों, खासकर राजपूत समाज, को उतना महत्व नहीं दे रही, जितना पहले देती थी। एक व्यक्ति ने कहा, “बीजेपी अब दलित, पिछड़ा, और अति-पिछड़ा वर्गों पर ज्यादा ध्यान दे रही है, जिससे सवर्ण समाज का महत्व कम हो गया है।” कुछ लोगों ने तो बीजेपी के नेताओं को “गर्दन में पट्टा बांधकर” पार्टी के लिए काम करने वाला बताते हुए तीखी टिप्पणी की।

वहीं, एक अन्य व्यक्ति ने इस विवाद को “भ्रमित करने वाला” करार दिया और कहा कि रामगढ़ विधानसभा से बीजेपी का मौजूदा विधायक अशोक कुमार सिंह स्वयं राजपूत समाज से हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि इस तरह का माहौल न बनाया जाए, जो पार्टी की एकजुटता को नुकसान पहुंचाए। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि जिला कमेटी में बाहरी लोगों को शामिल करने से स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई है, जिसका नुकसान बीजेपी को आगामी चुनाव में उठाना पड़ सकता है।
रामगढ़ का जातीय समीकरण
रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण चुनावी नतीजों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, इस क्षेत्र में राजपूत समाज की आबादी सबसे अधिक है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 21% हिस्सा है। इसके बाद मुस्लिम मतदाता (8.5%) और यादव मतदाता (6.8%) का स्थान है। राजपूत वोटों पर बीजेपी और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) दोनों की नजर रहती है, क्योंकि यह समुदाय इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
हाल के उपचुनाव में भी रामगढ़ सीट पर तीखा मुकाबला देखने को मिला था, जहां बीजेपी, RJD, बहुजन समाज पार्टी (BSP), और जन सुराज पार्टी के उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर हुई थी। बीजेपी ने इस सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन अब राजपूत समाज की नाराजगी पार्टी के लिए नई चुनौती पेश कर सकती है।
बीजेपी की रणनीति और जातीय सम्मेलन
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को देखते हुए बीजेपी ने जातीय समीकरण साधने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। पार्टी ने विभिन्न जातियों को लामबंद करने के लिए सम्मेलन और रैलियां आयोजित करने की योजना बनाई है। उदाहरण के लिए, बीजेपी ने हाल ही में कुर्मी, कुशवाहा, और चंद्रवंशी समाज को साधने के लिए रैलियां की हैं। इसके अलावा, महाराणा प्रताप और भामा शाह की जयंती के अवसर पर राजपूत और वैश्य समाज को आकर्षित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए गए।
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हालांकि, रामगढ़ में राजपूत समाज की नाराजगी से पता चलता है कि बीजेपी की यह रणनीति पूरी तरह सफल नहीं हो रही। पार्टी को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व मिले, ताकि कार्यकर्ताओं और मतदाताओं का भरोसा बना रहे।
बिहार चुनाव 2025 का माहौल
बिहार में विधानसभा चुनाव अक्टूबर या नवंबर 2025 में होने की उम्मीद है, और सभी 243 सीटों के लिए तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार है, जिसमें बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड (JDU) प्रमुख दल हैं। दूसरी ओर, महागठबंधन में RJD, कांग्रेस, और वाम दल शामिल हैं। इसके अलावा, जन सुराज पार्टी जैसे नए खिलाड़ी भी मैदान में उतर रहे हैं, जिससे मुकाबला और रोचक हो गया है।
चुनाव आयोग ने 7.23 करोड़ मतदाताओं की सूची तैयार की है, और मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 6 जनवरी 2025 को हुआ। इस बीच, जातीय समीकरण और क्षेत्रीय मुद्दे चुनावी रणनीति का केंद्र बने हुए हैं। रामगढ़ जैसे क्षेत्रों में स्थानीय विवाद और नाराजगी गठबंधनों के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं।
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रामगढ़ विधानसभा में राजपूत समाज की नाराजगी ने बीजेपी के लिए एक नया सिरदर्द पैदा कर दिया है। जिला कमेटी में प्रतिनिधित्व न मिलने से नाराज कार्यकर्ताओं ने पार्टी की रणनीति पर सवाल उठाए हैं, और यह मुद्दा चुनाव से पहले और गहरा सकता है। बीजेपी को इस नाराजगी को दूर करने और सभी समुदायों को साथ लेकर चलने की रणनीति बनानी होगी। दूसरी ओर, विपक्षी दल इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। आगामी महीनों में यह देखना रोचक होगा कि रामगढ़ में यह जातीय खटास बीजेपी के लिए कितनी बड़ी चुनौती बनती है। क्या बीजेपी इस विवाद को सुलझाकर राजपूत वोटों को अपने पक्ष में रख पाएगी? यह समय ही बताएगा।
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