भोजपुरी संगीत की दुनिया में निर्गुण विधा के शिखर पुरुष के रूप में जाने जाने वाले एक प्रसिद्ध गायक ने भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़कर जन सुराज का दामन थाम लिया है। सोमवार, 11 अगस्त 2025 को बक्सर जिले के पुराना भोजपुर में आयोजित ‘बिहार बदलाव यात्रा’ के दौरान जन सुराज के संस्थापक ने मंच से उनका स्वागत किया और पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवाई। यह कदम बिहार की राजनीति और सांस्कृतिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। इस लेख में हम इस घटना की पूरी जानकारी सरल हिंदी में दे रहे हैं, ताकि पाठकों को इसकी महत्ता समझ में आए।

भाजपा छोड़ने का फैसला
यह गायक मई 2018 से भाजपा से जुड़े हुए थे और दिल्ली भाजपा के संस्कृति प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष के रूप में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने कहा कि बिहार के लोग रोजगार के लिए दिल्ली, मुंबई, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। बाहर जाकर उन्हें अपमान और मार सहनी पड़ती है। बिहार के बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उन्होंने जन सुराज से जुड़ने का निर्णय लिया।
यह फैसला भोजपुरी भाषी इलाकों में सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर लाभकारी साबित हो सकता है, क्योंकि गायक की लोकप्रियता लाखों लोगों तक फैली हुई है।
भोजपुरी संगीत का चमकता सितारा
1 अगस्त 1957 को जन्मे यह गायक भोजपुरी गायन की दुनिया में एक सम्मानित नाम हैं। निर्गुण गीतों से विशेष पहचान पाने वाले उन्होंने भजन, सोहर, कजरी, फगुआ, बिरहा सहित लगभग साढ़े चार हजार गीत गाकर भोजपुरी संगीत को समृद्ध किया है। उन्हें 23 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं और 2018 में उन्हें पद्मश्री देने की मांग भी उठी थी।
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उनकी संगीतमय यात्रा भोजपुरी संस्कृति का प्रतीक है, और उनके गीतों ने लाखों लोगों को प्रभावित किया है।
विवादों के बावजूद लोकप्रियता बरकरार
संगीत जगत में उनकी ख्याति के बीच कर चोरी के एक मामले में उन्हें तीन साल की सजा और 10 हजार रुपये जुर्माना भी भुगतना पड़ा, लेकिन इस विवाद का उनकी लोकप्रियता पर खास असर नहीं पड़ा। उनके प्रशंसक आज भी उनके गीतों को सुनते हैं और उनका सम्मान करते हैं।

जन सुराज को मिलेगा सांस्कृतिक संबल
विशेषज्ञों का मानना है कि भोजपुरी भाषी इलाकों में यह गायक का जन सुराज से जुड़ना सांस्कृतिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर लाभकारी होगा। भोजपुरी गीत और संस्कृति से जुड़े लाखों लोग अब उन्हें राजनीतिक मंच से देखेंगे, जिससे पार्टी का जनाधार मजबूत हो सकता है।
यह कदम जन सुराज के लिए एक रणनीतिक बढ़त का काम करेगा, क्योंकि गायक की लोकप्रियता बिहार के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में फैली हुई है।

भोजपुरी संगीत के दिग्गज का भाजपा छोड़कर जन सुराज में शामिल होना बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। उनके इस फैसले से सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र में नई संभावनाएं खुली हैं। बिहार के लोग अब देख रहे हैं कि यह बदलाव राज्य के भविष्य को कैसे प्रभावित करेगा। यह घटना बिहार की राजनीति में सांस्कृतिक हस्तियों की भूमिका को और महत्वपूर्ण बना देती है।
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