भारत दुनिया के बड़े दवा निर्यातकों में से एक के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। वैश्विक फार्मास्यूटिकल्स और दवाओं के बाजार में भारत की हिस्सेदारी 5.71% है, जो इसे एक अहम खिलाड़ी बनाता है।
लेकिन हाल के वर्षों में भारत की कई दवाओं पर गुणवत्ता को लेकर सवाल उठे हैं, जिसने न सिर्फ देश की छवि को प्रभावित किया है, बल्कि घरेलू बाजार में भी चिंता पैदा कर दी है।
क्या यह ताजा मामला भारत की दवाओं की विश्वसनीयता को खतरे में डाल रहा है? और अगर निर्यात में गड़बड़ियां हो रही हैं, तो घरेलू स्तर पर दवाओं की गुणवत्ता का क्या हाल होगा? आइए, इस मुद्दे की गहराई में जाएं और जानें कि यह मसला कितना गंभीर है।

भारत का दवा निर्यात: एक मजबूत शुरुआत
भारत की दवा उद्योग ने पिछले कुछ सालों में शानदार प्रगति की है। 5.71% वैश्विक हिस्सेदारी के साथ यह देश न सिर्फ सस्ती जेनेरिक दवाओं का बड़ा आपूर्तिकर्ता है, बल्कि कई देशों की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने में भी अहम भूमिका निभा रहा है। लेकिन हाल की घटनाओं ने इस भरोसे पर सवालिया निशान लगा दिया है।
गुणवत्ता पर उठते सवाल
हाल के वर्षों में कई देशों ने भारतीय दवाओं की गुणवत्ता को लेकर चिंता जताई है। कुछ मामलों में दवाओं में गलत मिश्रण या मानकों से कम गुणवत्ता की शिकायतें सामने आई हैं, जो निर्यात को लेकर चिंता बढ़ा रही हैं।
एक रिटायर्ड डॉक्टर, सुनील प्रसाद, कहते हैं, “अगर विदेशों में दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं, तो यह सोचने की बात है कि हमारे अपने लोग क्या इस्तेमाल कर रहे हैं।” यह चिंता तब और गहरी हो जाती है, जब हम सोचते हैं कि निर्यात में सख्ती से जांच होती है, लेकिन घरेलू बाजार में क्या स्थिति है?
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घरेलू बाजार की चिंता
निर्यात में जो दवाएं जा रही हैं, उनकी गुणवत्ता पर सवाल उठना स्वाभाविक रूप से घरेलू बाजार की दवाओं की स्थिति पर भी विचार करने को मजबूर करता है।
एक युवा मां, रीता कुमारी, कहती हैं, “मेरे बच्चे की दवा लेते वक्त मन में डर लगता है कि कहीं वह सही न हो।” कई लोग मानते हैं कि अगर निर्यात में गड़बड़ियां हो रही हैं, तो घरेलू स्तर पर गुणवत्ता और निगरानी की कमी और गंभीर हो सकती है।
एक किसान, रामनाथ यादव, कहते हैं, “हम गरीब लोग तो दवाओं पर ही निर्भर हैं, अगर वह भी खराब निकली तो क्या होगा?”

दवाओं की विश्वसनीयता पर असर
इन घटनाओं ने भारत की दवाओं की वैश्विक विश्वसनीयता को चुनौती दी है। एक स्थानीय व्यापारी, अजय मिश्रा, कहते हैं, “अगर विदेशों में हमारी दवाओं पर भरोसा कम होगा, तो हमारा बाजार भी प्रभावित होगा।”
विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति तभी सुधरेगी, जब दवा निर्माण में सख्ती और पारदर्शिता बढ़े। एक शिक्षक, मंजू देवी, कहते हैं, “हमें अपनी दवाओं की गुणवत्ता पर गर्व है, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे।”
क्या है समाधान?
इस समस्या से निपटने के लिए दवा उद्योग में गुणवत्ता नियंत्रण को मजबूत करना जरूरी है। एक युवा, राहुल कुमार, कहते हैं, “सरकार को चाहिए कि हर दवा की जांच हो और फर्जीवाड़ा करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो।”
साथ ही, घरेलू बाजार में भी लोगों को सही जानकारी और सस्ती, गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध कराना होगा। वही डॉक्टर, विजय शंकर, कहते हैं, “निर्यात और घरेलू बाजार, दोनों को एक समान मानकों पर लाना होगा।”
लोगों की राय और उम्मीद
लोग इस मुद्दे पर चिंतित हैं, लेकिन उम्मीद भी बरकरार है। एक बुजुर्ग, कमला देवी, कहती हैं, “हमारी दवाएं दुनिया को ठीक करती हैं, लेकिन अब गुणवत्ता का ध्यान रखना होगा।”
वहीं, एक छात्र, संजय पासवान, कहते हैं, “अगर सरकार ध्यान दे, तो हमारी दवाओं का नाम फिर से ऊंचा हो सकता है।” यह साफ है कि लोग बदलाव चाहते हैं और भरोसा चाहते हैं कि उनकी सेहत से समझौता नहीं होगा।
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विश्वास की बहाली की जरूरत
भारत दवा निर्यात वैश्विक हिस्सेदारी 5.71% दवाओं की गुणवत्ता मुद्दे ने एक बार फिर दवा उद्योग की विश्वसनीयता और गुणवत्ता पर चर्चा शुरू कर दी है। निर्यात में गड़बड़ियों ने घरेलू बाजार की चिंता को और बढ़ा दिया है।
यह समय है कि सरकार, उद्योग, और आम जनता मिलकर कड़े कदम उठाएं ताकि भारत की दवाओं का गौरव बरकरार रहे। अगर आप भी इस मुद्दे से जुड़े हैं, तो इस लेख को दूसरों के साथ साझा करें।
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