बिहार के बक्सर जिले में स्थित प्राचीन बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर आज, 14 जुलाई 2025 को सावन की पहली सोमवारी पर आस्था और भक्ति का गवाह बना। सुबह से ही मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा, जिनमें से कई लोग 40 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर दर्शन के लिए पहुंचे। भोलेनाथ के जयकारों से गूंजता यह मंदिर न सिर्फ आध्यात्मिक उर्जा का केंद्र बना, बल्कि स्थानीय प्रशासन की चाक चौबंद व्यवस्था ने भी लोगों का दिल जीता। आइए, इस पवित्र दिन की अनकही कहानियों को करीब से जानते हैं।

आस्था का अनोखा मेला
सावन की पहली सोमवारी पर बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर में सुबह चार बजे से ही भक्तों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई। बक्सर से लेकर दूर-दराज के गांवों से आए श्रद्धालु, खासकर कांवरियों ने रामरेखा घाट से जल लेकर 40 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा की। 50 वर्षीय रामनाथ पासवान, जो अपने परिवार के साथ मंदिर पहुंचे, कहते हैं, “हमने सुबह चार बजे से पैदल चलना शुरू किया। थकान तो हुई, लेकिन बाबा के दर्शन का सुख सब भुला देता है।” उनकी आंखों में चमक और चेहरे पर संतुष्टि साफ दिख रही थी।
लगभग 10 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना थी, और मंदिर परिसर हर-हर महादेव और बोल बम के नारों से गूंज उठा। कई भक्तों ने अपने बच्चों और बुजुर्गों के साथ यह यात्रा की, जो उनकी अटूट श्रद्धा को दर्शाता है। 65 साल के दीनानाथ शर्मा, जो हर साल यह यात्रा करते हैं, बताते हैं, “बाबा की कृपा से हमारी सेहत ठीक रहती है। यह सफर हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गया है।”
प्रशासन की पुख्ता तैयारी
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन ने पहले से ही विशेष इंतजाम किए थे। एनडीआरएफ की टीम तैनात की गई, और मंदिर के आसपास बैरिकेडिंग, ड्रॉप गेट, और वन-वे ट्रैफिक व्यवस्था लागू की गई। सीसीटीवी निगरानी से हर कोने पर नजर रखी गई, जबकि चिकित्सा शिविर और पेयजल की व्यवस्था ने भक्तों को राहत दी। स्थानीय निवासी सुनील कुमार कहते हैं, “पिछले साल भीड़ में दिक्कत हुई थी, लेकिन इस बार सब कुछ व्यवस्थित लगा। प्रशासन ने अच्छा काम किया।”
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मंदिर के पुजारी, पंडित रमेश मिश्रा, ने बताया कि सुबह की सरकारी पूजा के बाद जलाभिषेक के लिए विशेष समय निर्धारित किया गया था, जिससे भक्तों को सुविधा हुई। महिलाओं और बच्चों के लिए अलग कतारें बनाई गईं, और वरिष्ठ नागरिकों के लिए व्हीलचेयर की व्यवस्था भी थी। यह सब देखकर मंदिर परिसर में एक अनुशासित लेकिन आध्यात्मिक माहौल बना रहा।
पैदल यात्रा की कठिनाई और उत्साह
40 किलोमीटर की दूरी तय करना आसान नहीं था, फिर भी श्रद्धालुओं का उत्साह देखते बनता था। कई लोग अपने कंधों पर कांवर लादे, गीत गाते और भजन गाते हुए आगे बढ़ रहे थे। 28 वर्षीय अजय यादव, जो पहली बार यह यात्रा कर रहे थे, कहते हैं, “पैरों में छाले पड़ गए, लेकिन बाबा का नाम लेते ही हिम्मत आ गई। यह मेरे लिए जीवन का सबसे बड़ा अनुभव है।” उनकी बात से यह जाहिर होता है कि आस्था ने उनकी थकान को पीछे छोड़ दिया।
रास्ते में ग्रामीणों ने भी भक्तों का स्वागत किया। उन्होंने फल, पानी, और छाया की व्यवस्था की, जो इस यात्रा को और यादगार बनाया। एक स्थानीय महिला, मीरा देवी, कहती हैं, “हम हर साल भक्तों की मदद करते हैं। यह हमारी परंपरा है, और बाबा का आशीर्वाद सबको मिलता है।”
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर, जो चोल कालीन वास्तुकला का नमूना है, अपनी पौराणिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं ब्रह्मा जी ने की थी, जो इसे और पवित्र बनाता है। सावन के इस महीने में मंदिर की छटा देखते ही बनती है, जहां हर भक्त अपने मन की मुराद लेकर आता है और बाबा की कृपा से लौटता है।
आस्था और व्यवस्था का संगम
बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर सावन पहली सोमवारी 2025 एक बार फिर साबित कर दिया कि भक्ति और अनुशासन साथ-साथ चल सकते हैं। 40 किलोमीटर पैदल चलकर दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की लगन और प्रशासन की सजगता ने इस दिन को यादगार बना दिया। अगर आप भी अगली सोमवारी (21 जुलाई) पर दर्शन की सोच रहे हैं, तो यह लेख आपको सही दिशा दिखाएगा। हमारी वेबसाइट पर ऐसी ताजा खबरों और आध्यात्मिक जानकारी के लिए जुड़े रहें, जहां आपकी आस्था को और मजबूती मिलेगी।
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