अहियापुर हत्याकांड, जिसने बक्सर जिले को दहलाकर रख दिया, अब एक नए विवाद के केंद्र में है। सोमवार, 2 जून 2025 को तीन प्रमुख आरोपियों – मनोज सिंह यादव, संजय कुमार उर्फ संतोष यादव, और बटेश्वर यादव – ने बक्सर कोर्ट में आत्मसमर्पण किया। लेकिन कोर्ट में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील ने एक वायरल वीडियो की प्रमाणिकता पर सवाल उठाकर मामले को नया आयाम दे दिया। वकील ने दावा किया कि वीडियो में यह स्पष्ट नहीं है कि गोली किसने चलाई और किसे लगी, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस दौर में डिजिटल साक्ष्य की तकनीकी जांच अनिवार्य है।

अहियापुर हत्याकांड की शुरुआत 24 मई 2025 को बक्सर के राजपुर थाना क्षेत्र के अहियापुर गांव में हुई। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, बालू की गाड़ी खड़ी करने को लेकर दो पक्षों में विवाद हुआ, जो जल्द ही हिंसक रूप ले लिया। इस झड़प में एक पक्ष ने गोलीबारी की, जिसमें बिनोद सिंह यादव, सुनील सिंह यादव, और वीरेंद्र सिंह यादव की मौके पर मौत हो गई, जबकि दो अन्य, मंटू सिंह और एक अन्य, गंभीर रूप से घायल हुए। मंटू का एक पैर काटना पड़ा।
इस घटना ने स्थानीय समुदाय में भय और आक्रोश पैदा किया। ग्रामीणों ने शवों को सड़क पर रखकर प्रदर्शन किया और तत्काल कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने 19 नामजद और तीन अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जिसमें मनोज सिंह यादव को मुख्य साजिशकर्ता माना गया। इस मामले ने सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर व्यापक चर्चा छेड़ दी।
आरोपियों का आत्मसमर्पण: कोर्ट में क्या हुआ?
2 जून 2025 को सुबह 8:45 बजे, अहियापुर हत्याकांड के तीन प्रमुख आरोपी – मनोज सिंह यादव, संजय कुमार उर्फ संतोष यादव, और धनसोई थाना क्षेत्र के बटेश्वर यादव – ने बक्सर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में आत्मसमर्पण किया। तीनों आरोपी अपने अधिवक्ता के साथ कोर्ट परिसर के पिछले गेट से दाखिल हुए और औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण किया। पुलिस ने तुरंत उन्हें अभिरक्षा में ले लिया।
आत्मसमर्पण के बाद कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई, जहां बचाव पक्ष ने एक वायरल वीडियो की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। इस वीडियो को कथित तौर पर घटनास्थल का बताया जा रहा है, लेकिन इसकी सत्यता अब जांच के दायरे में है। आत्मसमर्पण के बाद तीनों आरोपियों को जेल भेजने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
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वायरल वीडियो पर सवाल: बचाव पक्ष की दलील
कोर्ट में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने अहियापुर हत्याकांड से जुड़े वायरल वीडियो की प्रमाणिकता पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने तर्क दिया कि वीडियो में यह स्पष्ट नहीं है कि गोली किस व्यक्ति ने चलाई और वह किसे लगी। वकील ने कहा, “केवल वीडियो के आधार पर किसी को दोषी ठहराना उचित नहीं है। यह सतही सबूत है, जिसकी गहन जांच जरूरी है।”
वकील ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते उपयोग का हवाला देते हुए कहा कि डिजिटल साक्ष्य को बिना तकनीकी जांच के अंतिम नहीं माना जा सकता। नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट में AI-जनरेटेड फर्जी वीडियो के बढ़ते मामलों का जिक्र है, जैसे कि मेरठ में मुस्कान रस्तोगी केस में वायरल AI वीडियो। इस तरह के उदाहरणों ने डिजिटल सबूतों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। बचाव पक्ष ने मांग की कि वायरल वीडियो की फॉरेंसिक और AI-आधारित जांच की जाए ताकि इसकी सत्यता साबित हो सके।
AI तकनीकी जांच की मांग: क्या है इसका महत्व?
बचाव पक्ष की AI तकनीकी जांच की मांग ने अहियापुर हत्याकांड को तकनीकी और कानूनी दृष्टिकोण से जटिल बना दिया है। AI-आधारित जांच में वीडियो की पिक्सेल-स्तरीय विश्लेषण, ऑडियो की प्रामाणिकता, और संभावित डीपफेक या एडिटिंग की पहचान शामिल होती है। इंडिया.कॉम की एक खबर के अनुसार, केरल पुलिस ने 2006 के एक हत्याकांड को AI की मदद से सुलझाया था, जहां पुरानी तस्वीरों को अपग्रेड कर संदिग्धों की पहचान की गई। बचाव पक्ष का तर्क है कि बिना तकनीकी जांच के वीडियो को सबूत के तौर पर इस्तेमाल करना गलत होगा। यह मांग न केवल इस केस की दिशा बदल सकती है, बल्कि भविष्य में डिजिटल साक्ष्यों के उपयोग पर भी असर डाल सकती है।

प्रशासन और पुलिस की कार्रवाई
बक्सर पुलिस ने अहियापुर हत्याकांड में त्वरित कार्रवाई की है। एसपी शुभम आर्य की अगुवाई में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया गया है। पुलिस ने मनोज यादव के घर पर बुलडोजर चलाकर कुर्की-जब्ती की कार्रवाई की और एक आरोपी, ओम प्रकाश सिंह, को पहले ही गिरफ्तार किया।
तीन प्रमुख आरोपियों के आत्मसमर्पण ने जांच को गति दी है, लेकिन फरार अभियुक्तों की तलाश जारी है। एसपी आर्य ने आश्वासन दिया है कि सभी दोषियों को जल्द पकड़ा जाएगा। वायरल वीडियो की जांच के लिए पुलिस अब फॉरेंसिक विशेषज्ञों की मदद ले सकती है।
केस की नई दिशा और न्याय की उम्मीद
अहियापुर हत्याकांड में वायरल वीडियो की प्रमाणिकता पर उठे सवाल और AI जांच की मांग ने मामले को नया मोड़ दे दिया है। तीन प्रमुख आरोपियों का आत्मसमर्पण और पुलिस की सख्ती से न्याय की उम्मीद जगी है, लेकिन डिजिटल साक्ष्य की विश्वसनीयता पर विवाद ने जांच को जटिल बना दिया है।
बचाव पक्ष की दलील कि AI युग में तकनीकी जांच जरूरी है, न केवल इस केस बल्कि भविष्य के आपराधिक मामलों के लिए भी एक मिसाल बन सकती है। पीड़ित परिवार और बक्सर की जनता अब कोर्ट और प्रशासन से निष्पक्ष और त्वरित कार्रवाई की उम्मीद कर रही है।
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