अहियापुर हत्याकांड ने बक्सर जिले को हिलाकर रख दिया है। 24 मई 2025 को अहियापुर गांव में हुई इस तिहरे हत्याकांड की गूंज अब भी बरकरार है। आठ दिन बाद, 31 मई को बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह ने पीड़ित परिवार से मुलाकात की, लेकिन इस दौरे ने उम्मीद से ज्यादा नाराजगी और सवाल खड़े किए। पीड़ित परिवार ने सांसद के विलंबित आगमन पर नाराजगी जताई और इसे चुनावी रणनीति करार दिया।
अहियापुर हत्याकांड की शुरुआत 24 मई 2025 को राजपुर थाना क्षेत्र के अहियापुर गांव में हुई। बालू की गाड़ी खड़ी करने को लेकर दो पक्षों में विवाद हुआ, जो जल्द ही हिंसक झड़प में बदल गया। इस दौरान एक पक्ष ने ताबड़तोड़ गोलीबारी की, जिसमें बिनोद सिंह यादव, सुनील सिंह यादव, और वीरेंद्र सिंह यादव की मौके पर मौत हो गई। दो अन्य लोग, मंटू सिंह और एक अन्य, गंभीर रूप से घायल हुए, जिनमें मंटू का एक पैर काटना पड़ा।

इस घटना ने गांव में तनाव का माहौल पैदा कर दिया। ग्रामीणों ने शवों को सड़क पर रखकर प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किया और तत्काल कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने 19 नामजद और तीन अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जिसमें मनोज सिंह यादव, संजय कुमार उर्फ संतोष यादव, और बटेश्वर यादव को प्रमुख आरोपी माना गया।
सांसद सुधाकर सिंह का दौरा: क्या बदला?
31 मई 2025 को, अहियापुर हत्याकांड के आठ दिन बाद, बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे। इस दौरे के दौरान सांसद को ग्रामीणों और पीड़ित परिवार के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा। ग्रामीणों ने सवाल उठाया, “आप अब क्यों आए? चौसा में राजद नेताओं की भीड़ थी, लेकिन यहां कोई क्यों नहीं आया?”
सुधाकर सिंह ने सफाई दी कि पहले तीन दिन प्रशासन ने उन्हें न आने का अनुरोध किया था, और बाद में वे तमिलनाडु सहित अन्य राज्यों के दौरे पर थे। उन्होंने आश्वासन दिया, “इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई होगी।” हालांकि, पीड़ित परिवार ने इस आश्वासन को खोखला करार दिया। एक परिवार के सदस्य ने कहा, “आठ दिन बाद आए हैं। हमें उनके आने से संतुष्टि नहीं मिली। हम न्याय चाहते हैं, न कि केवल वादे।”
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पीड़ित परिवार की प्रतिक्रिया: आक्रोश और अविश्वास
पीड़ित परिवार का गुस्सा और अविश्वास साफ झलक रहा है। मंटू सिंह की पत्नी प्रियंका देवी ने बताया, “मेरे पति का पैर कट गया। मेरे दो छोटे बच्चे हैं। प्रशासन से न्याय की गुहार है, लेकिन नेता केवल बोलकर चले जाते हैं।” परिवार ने सांसद के दौरे को विधानसभा चुनाव से जोड़ा और कहा, “चुनाव नजदीक है, इसलिए नेता आ रहे हैं।”
परिवार ने प्रशासन पर भरोसा जताया, लेकिन नेताओं के बार-बार आने को “वोट की राजनीति” करार दिया। एक अन्य सदस्य ने कहा, “पप्पू यादव आए, सुधाकर सिंह आए, लेकिन न्याय तो कोर्ट से मिलेगा। प्रशासन और पुलिस पर हमें भरोसा है।” यह भावना दर्शाती है कि परिवार नेताओं के वादों से निराश है और केवल ठोस कार्रवाई चाहता है।
प्रशासन की कार्रवाई: कुर्की और गिरफ्तारी
अहियापुर हत्याकांड में प्रशासन ने कुछ कदम उठाए हैं। पुलिस ने एक आरोपी, ओम प्रकाश सिंह, को गिरफ्तार किया, और 2 जून को तीन प्रमुख आरोपियों – मनोज सिंह यादव, संजय कुमार उर्फ संतोष यादव, और बटेश्वर यादव – ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। पुलिस ने मनोज यादव के घर पर बुलडोजर चलाकर कुर्की-जब्ती की कार्रवाई की, जिसे कुछ लोग दिखावटी मानते हैं।
बक्सर के एसपी शुभम आर्य ने विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया है, जो फरार अभियुक्तों की तलाश में छापेमारी कर रहा है। पुलिस सीसीटीवी फुटेज और मुखबिरों की मदद से अन्य संदिग्धों की तलाश कर रही है। हालांकि, लोगो ने दावा किया कि अभी भी आरोपी खुले घूम रहे हैं, और कुर्की की कार्रवाई अपर्याप्त है।

राजनीतिक हस्तियों की भूमिका: वादे या वोट की राजनीति?
अहियापुर हत्याकांड ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने 28 मई को पीड़ित परिवार से मुलाकात की और भावुक होकर कहा, “जब तक अपराधियों को फांसी नहीं मिलती, मैं चैन से नहीं बैठूंगा।” उनकी इस मुलाकात ने गांव में भावनात्मक माहौल बनाया।
वहीं, राजद के प्रतिनिधिमंडल ने दिनारा विधायक विजय मंडल के नेतृत्व में परिवार से मुलाकात की और हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया। राजद ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
हालांकि, पीड़ित परिवार इन दौरे को चुनावी रणनीति मानता है। एक सदस्य ने कहा, “नेता बोलते हैं, लेकिन अदालत का फैसला ही न्याय दिलाएगा।” यह धारणा दर्शाती है कि राजनीतिक हस्तक्षेप से ज्यादा, परिवार को न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा है।
अहियापुर हत्याकांड ने बक्सर में सामाजिक और राजनीतिक तनाव को उजागर किया है। सांसद सुधाकर सिंह का दौरा, हालांकि देर से हुआ, प्रशासन की कार्रवाई को गति दे सकता है। लेकिन पीड़ित परिवार का गुस्सा और अविश्वास इस बात का सबूत है कि केवल वादे पर्याप्त नहीं हैं। तीन प्रमुख आरोपियों का आत्मसमर्पण और पुलिस की सक्रियता से कुछ उम्मीद जगी है, लेकिन फरार अभियुक्तों की गिरफ्तारी और निष्पक्ष जांच अभी भी जरूरी है।
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